बिहार में पत्रकारिता
भारत में अखबार छापने का विचार सबसे पहले डच एडवेंचरर विलियम बोल्ट्स द्वारा दिया गया था, लेकिन हिक्की इस अवधारणा को लागू करने वाले पहले व्यक्ति थे। हिक्की ने 29 जनवरी 1780 को हिक्की के ‘बंगाल गजट‘ का प्रकाशन शुरू किया। हिक्की ने समाचार पत्र प्रकाशित करने का जो बीजारोपण किया था, वह आज विशाल वृक्ष का स्वरूप ले चुका है। पत्रकारिता के शुरुआती दौर में हिक्की के प्रयासों से बिहार अछूता नहीं रहा था। बिहार के पत्रकारिता के इतिहास को स्वर्ण अक्षरों में लिखा जा सकता है। राज्य के पत्रकारों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्रमुख भूमिका निभाई। उनके साहसपूर्ण लेखन ने लोगों को प्रेरित करने का कार्य किया है। बिहार में समाचार पत्र - पत्रकारिता का आरंभ उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ।
1810 में बिहार का पहला समाचार पत्र प्रकाशित हुआ। बिहार में उस समय एक भी प्रिंटिंग प्रेस नहीं होने से मौलवी अकरम अली ने ‘साप्ताहिक उर्दू अखबार‘ संपादित कर कोलकता से छपवाया। कहते हैं, पत्रकारिता बंगाल में जन्मी और धीरे-धीरे पूरे राष्ट्र में फैल गई। बिहार हिन्दी भाषी क्षेत्र होने के बावजूद, यहां से हिन्दी पत्रों का प्रकाशन उर्दू व अंग्रेजी समाचार पत्रों के बाद ही हुआ। बिहार का पहला समाचार पत्र ब्रिटिश सरकार के प्रयास से प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए प्रकाशित किया गया था। उस समय पटना के कमिश्नर विलियम टेलर ने 3 सितंबर, 1856 को एक उर्दू अखबार, 'अखबार-ए-बिहार' का प्रकाशन शुरू करने की पहल की। बालकृष्ण भट्ट और केशवरम भट्ट द्वारा 1872 में एक हिंदी समाचार पत्र 'बिहार बंधु' का कलकत्ता से प्रकाशन शुरू किया गया, जिसकी छपाई 1874 में पटना में होने लगी। मुंशी हसन अली इसके पहले संपादक थे। इसे बिहार में समाचार पत्र का आरंभ माना जाता है।
गुरु प्रसाद सेन द्वारा बिहार के पहले अंग्रेजी समाचार-पत्र 'दि बिहार हेराल्ड' का प्रकाशन 1875 में शुरू किया गया । 1881 में पटना से 'इंडियन क्रॉनिकल' नामक अखबार प्रकाशित हुआ। 'बिहार टाइम्स' की स्थापना 1894 में सच्चिदानंद सिन्हा द्वारा की गई थी, महेश नारायण इसके पहले संपादक थे, और उन्होंने 1907 में अपनी मृत्यु तक इसे संपादित किया । बिहार में पहला हिंदी दैनिक 'सर्वहितैषी' के नाम से 1890 में पटना से प्रकाशित हुआ।
उन्नीसवी शताब्दी में बिहार का पहला उर्दू अखबार नुरुल अन्वार था। इसे मोहम्मद हाशिम द्वारा आरा से प्रकाशित किया गया। बिहार का पहला उर्दू दैनिक 1876 में आरा से ही प्रकाशित हुआ। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों के उर्दू अखबारों में सबसे पुराना सदा-ए-आम था।यह पटना से प्रकाशित हुआ। इसी काल में इत्तिहाद और शांति का प्रकाशन भी आरंभ हुआ।
'बिहार गआर्डियन' की स्थापना 1899 में किया गया। 1906 में 'बिहार गआर्डियन' ने अपना नाम बदलकर बिहारी (Behari) कर दिया। दि बिहारी के स्थान पर 15 जुलाई, 1918 से दि सर्चलाइट का प्रकाशन सचिदानंद सिन्हा द्वारा शुरू किया गया। इसके प्रथम संपादक सैयद हैदर हुसैन थे। 1930 में दि सर्चलाइट को एक दैनिक का रूप दे दिया गया। इसने सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन के क्रम में राष्ट्रवादियों के प्रवक्ता के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।1947 मे सर्चलाइट के हिंदी प्रभाग के रूप में प्रदीप नाम से प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। 1985 में सर्चलाइट का प्रकाशन बंद करके उसके स्थान पर हिंदुस्तान टाईम्स' के पटना संस्करण को शुरू किया गया।
'बिहार टाईम्स' की स्थापना पटना में एक साप्ताहिक के रूप में 1903 में हुई जबकि 1906 में इसे भागलपुर से प्रकाशित होने वाले 'बिहार न्यूज' के साथ जोड़कर 'दि बिहारी (Beharee) नाम दे दिया गया। कुछ वर्षों बाद 'दि बिहारी' को 1917 में एक दैनिक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया तथा 1917 में ही इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया। 'दि बिहार टाईम्स' ने सक्रिय रुप से बिहार को पृथक प्रांत बनाने की मांग की प्रस्तुति की। बिहार के पहले मुख्यमंत्री मोहम्मद यूनुस ने 1924 में 'दि पटना टाइम्स' का प्रकाशन आरंभ किया, जो 1944 तक प्रकाशित होता रहा।
1931 में दरभंगा के महाराजा कामेश्वर सिंह ने 'दि इंडियन नेशन' की स्थापना की। 1932 में इसका प्रकाशन स्थगित कर दिया गया। 'दि इंडियन नेशन' द्वारा 'आर्यावर्त' का प्रकाशन हिंदी भाषा में दरभंगा से 1941 में शुरू किया गया। किन्तु पुनः इसे वर्ष 1943 में आरंभ किया गया जो 1980 के दशक के मध्य तक चलता रहा। बीसवीं शताब्दी के आरंभ में राष्ट्रवादियों द्वारा 'दि मदरलैंड' तथा 'बिहार स्टैंडर्ड' का प्रकाशन आरंभ किया गया । असहयोग आंदोलन के दौरान मजहरूल हक ने पटना से दि मदरलैंड का प्रकाशन आरंभ किया। सरकार की कड़ी आलोचना के कारण इस समाचार पत्र पर अनेक बार मुकदमे चलाए गए और शीघ्र ही इसका प्रकाशन रोक दिया गया। 30 सितंबर 1921 को मजहरुल हक ने सदाकत आश्रम से मदरलैंड नाम से अखबार शुरू किया।
मातृभूमि का उद्देश्य राष्ट्रीय भावना का प्रसार करना, असहयोग का प्रचार करना और हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रचार करना था। सरकार की कड़ी आलोचना के चलते इस अखबार को कई बार आजमाया गया और जल्द ही इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया। 26 जुलाई 1922 को मौलाना मजहरुल हक को मातृभूमि में प्रकाशित एक लेख के कारण गिरफ्तार भी किया गया था।
ईश्वरी प्रसाद शर्मा, आचार्य शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपूरी सहित कई साहित्यकारों ने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं का संपादन सम्पादन कर बिहार में पत्रकारिता को नई ऊचाई दी ।
1881 में मासिक पत्रिका क्षत्रिय, 1903 में लक्ष्मी, 1929 में मासिक पत्रिका युवक, 1940 में मासिक पत्रिका आरती, 1948 में मासिक पत्रिका ज्योत्सना बिहार से प्रकाशित पत्रिकाएं हैं। कई साप्ताहिक पत्र-पत्रिकाओं का भी प्रकाशन बिहार में प्रारम्भ हुआ। 1855 में पटना से अलपंच का उर्दू में , 1874 में पटना से बिहार बंधु का हिन्दी में, 1886 में भागलपुर से पीयूष प्रवाह का हिन्दी में, 1919 में पटना से देश का हिन्दी में, 1921 में पटना से तरुण भारत का हिन्दी में, 1924 में पटना से गोलमाल का हिन्दी में, 1929 में पटना से महावीर का हिन्दी में, 1938 में पटना से किशोर का हिन्दी में, 1940 में पटना से हुंकार का हिन्दी में, 1942 में पटना से अग्रदूत का हिन्दी में प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। 1948 में दरभंगा से एक साहित्यिक पत्रिका 'किरण' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। पटना से 1948 में इन्कलाबे-जदीद का प्रकाशन आरंभ हुआ।
देश को आजाद कराने में समाचार पत्रों की भूमिका स्वतंत्रता सेनानियों के हथियार की तरह थी। राष्ट्रवादियों द्वारा समाचारों का प्रकाशन देश के लोगों को जाग्रत करने के लिए किया जाता था। अंग्रेजी सरकार विरोधी समाचार वाले पत्र-पत्रिकाओं वितरण करना भी बहुत कठिन था। राष्ट्रवादियो ने लोगों को जाग्रत कर देश से अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंका। नागरिक अधिकारों की रक्षा करने एवं शांति और भाईचारे की भावना बढ़ाने में इसकी अहम भूमिका रही है। समय समय पर ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता का हनन भी किया गया,परन्तु बिहारियों के ह्रदय में स्वतंत्रता की अदम्य चिंगारी को प्रेस ने जिलाए रखा। मुक्तसर, कहा जा सकता है कि राष्ट्रवादी विचारों को फैलाने के लिए प्रेस ने उत्प्रेरक का कार्य किया।
राष्ट्रीय आंदोलन में पत्रकारिता की भूमिका
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता ने एक शक्तिशाली और प्रेरणादायक भूमिका निभाई। यह केवल समाचारों का माध्यम नहीं था, बल्कि राष्ट्रीय भावना को जगाने, औपनिवेशिक अत्याचारों को उजागर करने और लोगों को संगठित करने का प्रमुख साधन था।
राष्ट्रीय आंदोलन में बिहार की पत्रकारिता की भूमिका
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की पत्रकारिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह आंदोलन केवल राजनीतिक संघर्ष नहीं था, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी प्रतीक था। बिहार के पत्रकारों और उनके प्रकाशनों ने जनजागरण, ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन और स्वतंत्रता की चेतना को व्यापक स्तर पर फैलाने का कार्य किया।
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