ब्रिटिश शासनकाल में बिहार में पाश्चात्य शिक्षा (प्रौद्योगिकी शिक्षा-समेत) का विकास
प्राचीन काल से ही बिहार विद्या का प्रसिद्ध केन्द्र रहा है। प्राचीन काल में नालंदा विश्वविद्यालय, ओदन्तपुरी, विक्रमशिला विश्वविद्यालय आदि शिक्षा के प्रसिद्ध केन्द्र रहे हैं। मध्यकाल में पटना, बिहारशरीफ, भागलपुर आदि शिक्षा के जाने-मान केन्द्र बने। उन्नीसवीं सदी के दूसरे तथा तीसरे दशकों से पाश्चात्य देशों की शिक्षा तथा संस्कृति का प्रभाव देखने को मिलता है। अंग्रेजों के समाजिक- आर्थिक कुचक्रो के कारण भारत की पारंपरिक शिक्षा लुप्त होती चली गई। बंगाल तथा बिहार में उच्च कोटि की संस्कृत शिक्षा के ह्रास का कारण स्थायी बन्दोवस्ती थी, जिसके चलते जमींदार परिवारों की आय में कमी और उनकी आर्थिक अवनति थी।
बुकानन के अनुसार दरभंगा महाराज ने शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया था। फारसी भाषा की शिक्षा की व्यवस्था बहुत ही अच्छी थी। मुसलमानों के लिए उच्च शिक्षा का माध्यम फारसी भाषा ही थी। मुगल दरबारों तथा बाद में सरकारी कार्यालयों में इसकी प्रधानता के कारण व्यावहारिक सुविधाओं की दृष्टि से हिन्दू भी इस भाषा को सीखा करते थे। मध्यकाल में ईरान से फारसी भाषा के कई विद्वान् भारत में आकर पटना में बस गए थे। एडम के सर्वेक्षण के अनुसार 1844 ई० के आस-पास बिहार तथा बंगाल में प्रायः प्रत्येक ग्राम में एक विद्यालय था। साक्षरता का औसत 7.75% था।
उन्नीसवीं सदी के दूसरे दशक से पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बिहार प्रांत पर धीरे-धीरे बढ़ता गया, फलस्वरूप बिहार के चिन्तन तथा संस्कृति में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ तक, राज्य की ओर से कोई शिक्षा प्रणाली विकसित नहीं की गई थी। उस समय बिहार में शिक्षा, वस्तुतः राजाओं, जमींदारों तथा समाज के अन्य उदार लोगों के व्यक्तिगत दान पर निर्भर करती थीं। बिहार में उस समय शिक्षा की भारी अवनति हुई जब स्थायी बन्दोबस्ती (Permanent Settlement) के कारण राजाओं तथा जमींदारों की आय में पर्याप्त कमी आ गई।
लार्ड मैकाले का स्मरण-पत्र, 1835 (Lord macaulay's minute, 1835) कम्पनी सरकार का शिक्षा से सम्बंधित आंग्ल-प्राच्य विवाद पर महत्वपूर्ण दस्तावेज है। गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी परिषद के सदस्य लार्ड मैकाले ने आंग्ल-दल का समर्थन किया। 2 फरवरी, 1835 को अपने महत्वपूर्ण स्मरण-पत्र में उसने लिखा कि 'सरकार के सीमित संसाधनों के मद्देनजर पाश्चात्य विज्ञान एवं साहित्य की शिक्षा के लिये, माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा ही सर्वोत्तम है। मैकाले ने कहा कि "भारतीय साहित्य का स्तर यूरोपीय साहित्य की तुलना में अत्यंत निम्न है"। उसने भारतीय शिक्षा पद्धति एवं साहित्य की आलोचना करते हुये अंग्रेजी भाषा का पूर्ण समर्थन किया।
मैकाले के इन सुझावों के पश्चात सरकार ने शीघ्र ही स्कूलों एवं कालेजों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बना दिया। अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने वाले स्कूलों एवं कालेजों की बड़े पैमाने पर स्थापना की गयी। इस प्रकार सरकार जनसाधारण की शिक्षा को उपेक्षित करने लगी। सरकार की योजना, समाज के उच्च एवं मध्य वर्ग के एक तबके को शिक्षित कर एक ऐसी श्रेणी बनाने की थी जो "रक्त एवं रंग से भारतीय हो परंतु अपने विचार नैतिक मापदण्ड, प्रज्ञा (intellect) एवं प्रवृत्ति (Taste) से अंग्रेज हो" । यह श्रेणी ऐसी हो कि यह सरकार तथा जन-साधारण के बीच दुभाषिये (interpreters) की भूमिका निभा सके। इस प्रकार पाश्चात्य विज्ञान तथा साहित्य का ज्ञान जनसाधारण तक पहुंच जायेगा। इस सिद्धांत को अधोगामी 'विप्रवेशन सिद्धांत' (downward infiltration theory) के नाम से जाना गया।
सन् 1835 में बिहार में शिक्षा प्रणाली में एक नई धारा प्रवाहित हुई। लॉर्ड विलियम बैंटिंक की सरकार ने यह घोषणा की कि 'शिक्षा के लिए जो धन मंजूर हो, उसे केवल अंग्रेजी शिक्षा के लिए ही व्यय करना सर्वोत्तम है ।" फलत: अंग्रेजी शिक्षा के लिए पूर्णिया, पटना, आरा तथा छपरा में जिला स्कूल स्थापित किए गए। भागलपुर में जिला स्कूल खोले गए। इसके बाद मुजफ्फरपुर, देवघर, मोतिहारी, हजारीबाग, चाईबासा, पाकुड़ तथा अन्य स्थानों में सरकारी सहायता प्राप्त उच्च विद्यालय प्रारंभ किए गए ।
बोर्ड ऑफ कॉन्ट्रोल के सभापति चार्ल्स वुड के 1854 ई० के शिक्षा-संबंधी निर्देशों (डिस्पैच) के अनुसार 1858 ई० में कलकत्ता विश्वविद्यालय स्थापित हुआ। डिस्पैच में व्यावसायिक शिक्षा के महत्त्व और तकनीकी विद्यालयों की स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया गया था। 1863 ई० में पटना कॉलेज की स्थापना हुई। बिहार का सबसे पुराना तथा उच्च शिक्षा के लिए सर्वोत्कृष्ट महाविद्यालय होने के कारण, राज्य में इसे गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है।1889 ई० में बिहार नेशनल कॉलेज, पटना की स्थापना हुई। पूसा में 1902 ई० में एक अमेरिकी हेनरी फिलिप्स के अनुदान से "एग्रीकल्चरल रिसर्च सेंटर एवं एक्सपेरिमेंट फार्म" के रूप में कृषि-संबंधी शोध एवं प्रयोगों का केन्द्र स्थापित हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य कृषि के क्षेत्र में नित नये-नये अनुसंधानों को बढ़ावा देना था। इंपीरियल कृषि अनुसंधान संस्थान 1905 में स्थापित हुआ जो कि अब डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के नाम से जाना जाता है।
विधि की शिक्षा प्रदान करने के लिए सन् 1909 में पटना ला कालेज की स्थापना की गयी। सन् 1917 में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना से बिहार में उच्च शिक्षा के विस्तार का एक नया अध्याय शुरू हुआ । पटना कॉलेज के कला विभाग के स्नातकोत्तर विभाग 1917 ई० में और भौतिकी तथा रसायनविज्ञान के विभाग 1919 ई० में खोले गये। सैण्डलर आयोग (1917-19 ई०) ने व्यावहारिक विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी डिप्लोमा एवं डिग्री की उपाधि का प्रबंध करने की बात की तथा व्यावसायिक कॉलेज खोलने की बात कही। विज्ञान-संबंधी उच्च शिक्षा देने के लिए 1927 ई० में एक स्वतंत्र महाविद्यालय की हैसियत से पटना साइंस कॉलेज स्थापित किया गया। 1925 ई० में प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई, जिसे अब पटना मेडिकल कॉलेज के नाम से जाना जाता है। खनिज - संसाधनों के उचित दोहन के लिए 1926 ई० में "इण्डियन स्कूल ऑफ माइन्स (धनबाद) की स्थापना की गई। पशुधन के विकास के लिए 1930 ई० में पटना में पशु-चिकत्सा (वेटेनरी) कॉलेज की स्थापना की गई। भारत का दूसरा सबसे पुराना इंजीनियरिंग कॉलेज जिसे एनआईटी पटना के नाम से जाना जाता है , 1886 में सर्वेक्षण प्रशिक्षण स्कूल के रूप में स्थापित किया गया था और बाद में 1932 में इसका नाम बदलकर बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग कर दिया गया। 1947 ई० में दरभंगा मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई।
बिहार- उड़ीसा सरकार द्वारा गठित समिति की अनुशंसा पर, सन् 1914 में, महिलाओं में उच्च शिक्षा के विस्तार के लिए पटना तथा कटक के कन्या विद्यालयों में इण्टरमीडिएट कक्षाएँ प्रारम्भ की गई। प्रत्येक कमिश्नरी में एक-एक कन्या महाविद्यालय खोलने की योजना बनी। लेकिन प्रगति बहुत धीमी रही। सन् 1929 में हार्टोंग समिति ने बिहार का उल्लेख करते हुए लिखा "लगभग 25 लाख लड़कियों में से यहाँ के विद्यालयों में शिक्षा पानेवाली कन्याओं की संख्या केवल एक लाख सोलह हजार है और उनमें से अधिकांश प्राथमिक स्तर के विद्यालयों में। फिर भी, जागृति के लक्षण स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे हैं।" उसके बाद सह-शिक्षा की व्यवस्था प्रारम्भ की गई और अनेक कन्या विद्यालय खोले गए । सन् 1940 में पटना विमेंस कॉलेज की स्थापना की गयी।
शिक्षा के प्रचार-प्रसार में स्वयंसेवी संस्थओं तथा प्रमुख व्यक्तियों ने भी अपनी-अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभायीं। इस क्षेत्र में आर्यसमाज, ब्रह्मसमाज तथा ईसाई मिशनरियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। ईसाई मिशनरियों द्वारा 1858 ई० में बालकों के शिक्षा हेतु संत माइकल हाई स्कूल, पटना तथा बालिकाओं के शिक्षा 1853 ई० में संत जोसेफ स्कूल खोला गया था। उच्च शिक्षा के लिए 1899 ई० में सेंट कोलंबस कॉलेज एवं 1940 ई० में राँची में सेंट जेबीयर कॉलेज स्थापित किया गया। आर्यसमाज ने वैदिक शिक्षा के पुनरुत्थान के लिए डी० ए० वी० स्कूलों की श्रृंखला स्थापित की। ब्रह्मसमाज के तत्वावधान में 1897 में पटना में राममोहन राय सेमिनरी की स्थापना की गई। मुसलमानों के बीच शिक्षा प्रसार के लिए कई संगठन बने! इनकी प्रेरणा का श्रोत अलीगढ़ आन्दोलन था, जिसके नेता सर सैय्यद अहमद खाँ मुस्लिम समाज में जागृति का संचार कर रहे थे। इमदाद अली खाँ ने 1872 ई० में मुजफ्फरपुर में बिहार साइंटिफिक सोसाईटी स्थापित की। 1873 ई० में इसकी शाखा पटना में खुली। पटना में मोहम्मडन एजुकेशन सोसाइटी का गठन हुआ, जिसके द्वारा मोहम्मडन एंग्लो-अरेबिक स्कूल की स्थापना पटना सिटी में 1885 ई० में की गई।
अंग्रेजों की शिक्षा नीति का मूल्यांकन
सीमित रूप से ही सही लेकिन सरकार ने आधुनिक शिक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किंतु इस संबंध में लोकोपरोकारी भारतीयों के प्रयास ज्यादा सराहनीय थे।
स्वतंत्रता के बाद (1947 से आज तक)
स्वतंत्रता के पश्चात शैक्षणिक संस्थानों में राजनीति तथा अकर्मण्यता करने से शिक्षा के स्तर में गिरावट आई। हाल के दिनों में उच्च शिक्षा की स्थिति सुधरने लगी है। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की स्थिति भी अच्छी हो रही है। विगत वर्षों में पटना में एक भारतीय प्राद्यौगिकी संस्थान (वर्ष 2008) और राष्ट्रीय प्राद्यौगिकी संस्थान तथा हाजीपुर में केंद्रीय प्लास्टिक इंजिनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्युट तथा केंद्रीय औषधीय शिक्षा एवं शोध संस्थान खोला गया है। बिहार के सभी जिलों मे 2019 में एक-एक सरकारी इंजिनियरिंग कॉलेज खोला गया है।
स्वतंत्रता के बाद बिहार में शिक्षा का विकास नए आयामों पर आधारित हुआ।
शिक्षा का विस्तार:
राज्य में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए कई नए स्कूल और कॉलेज स्थापित हुए।
पटना विश्वविद्यालय, बिहार विश्वविद्यालय, और मगध विश्वविद्यालय ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दिया।
तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा:
आईआईटी पटना (2008) और एनआईटी पटना (पूर्व में बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज) ने तकनीकी शिक्षा को नई ऊंचाई दी।
अन्य संस्थानों जैसे चाणक्या नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी और एम्स पटना ने भी शिक्षा के विविध क्षेत्रों में योगदान किया।
सरकारी योजनाएं:
सर्व शिक्षा अभियान और मध्याह्न भोजन योजना के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा को प्रोत्साहन मिला।
साइकिल योजना और छात्रवृत्ति कार्यक्रमों ने बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया।
वर्तमान स्थिति और चुनौतियां
बिहार में शिक्षा प्रणाली में कई सुधार हुए हैं, लेकिन चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं।
उपलब्धियां: बिहार बोर्ड (BSEB) और CBSE के माध्यम से कई छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का विस्तार हुआ है।
चुनौतियां: शिक्षक और सुविधाओं की कमी।बालिका शिक्षा और साक्षरता दर में सुधार की आवश्यकता। उच्च शिक्षा में गुणवत्ता और संसाधनों की कमी।
शिक्षा में नई पहल
डिजिटल शिक्षा: बिहार सरकार ने डिजिटल शिक्षा और स्मार्ट क्लासरूम की दिशा में कदम बढ़ाए हैं।
शिक्षा के लिए बजट वृद्धि: शिक्षा के लिए आवंटित बजट में वृद्धि हुई है।
शिक्षा में निजी क्षेत्र की भागीदारी: निजी संस्थानों के माध्यम से शिक्षा में सुधार किया जा रहा है।
निष्कर्ष
बिहार में शिक्षा का विकास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक एक लंबी यात्रा रही है। जहां प्राचीन काल में नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्व प्रसिद्ध केंद्र थे, वहीं आज बिहार आधुनिक संस्थानों के माध्यम से शिक्षा के नए आयाम स्थापित कर रहा है। हालांकि, चुनौतियों के बावजूद, बिहार शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत है।
बिहार में आधुनिक शिक्षा का प्रभाव
ब्रिटिश शासन के दौरान बिहार में आधुनिक शिक्षा का प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि इसने परंपरागत गुरुकुल और मदरसा शिक्षा व्यवस्था को बदलते हुए नई पद्धतियों और विषयों को शामिल किया। इस प्रभाव को निम्नलिखित बिंदुओं में रेखांकित किया जा सकता है:
1. आधुनिक शिक्षा प्रणाली की स्थापना : ब्रिटिश शासन में भारत में पहली बार औपचारिक आधुनिक शिक्षा प्रणाली की शुरुआत हुई। बिहार में पटना, भागलपुर और अन्य प्रमुख शहरों में स्कूल और कॉलेज स्थापित किए गए। उदाहरण के लिए: पटना कॉलेज (1863), पटना साइंस कॉलेज, टी. एन. बी. कॉलेज, भागलपुर| इन संस्थानों ने आधुनिक विषयों जैसे गणित, विज्ञान, और अंग्रेजी भाषा की शिक्षा प्रदान की।
2. अंग्रेजी भाषा का प्रभाव : अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देने के कारण बिहार के लोग पश्चिमी ज्ञान और प्रशासनिक कामकाज में दक्ष हुए। इसने भारतीयों को सरकारी नौकरियों के लिए सक्षम बनाया और नए सामाजिक वर्ग का उदय हुआ।
3. नवजागरण और सामाजिक सुधार : आधुनिक शिक्षा ने बिहार में सामाजिक सुधार आंदोलनों को प्रेरित किया। इसने जाति व्यवस्था, बाल विवाह, और दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों के खिलाफ जागरूकता फैलाने में मदद की।
राजेंद्र प्रसाद और अनुग्रह नारायण सिन्हा जैसे बिहार के शिक्षित नेता इसी शिक्षा प्रणाली का हिस्सा थे।
4. राष्ट्रीय चेतना का विकास : आधुनिक शिक्षा ने युवाओं में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता संग्राम के लिए चेतना जगाई। बिहार के छात्रों ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। 1917 का चंपारण सत्याग्रह महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुआ, जिसमें शिक्षित वर्ग ने अहम भूमिका निभाई। जयप्रकाश नारायण और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे नेता आधुनिक शिक्षा से प्रेरित थे।
5. कृषि और उद्योगों पर प्रभाव : शिक्षा के माध्यम से बिहार में नई कृषि और औद्योगिक तकनीकों का विकास हुआ। ब्रिटिश प्रशासन ने तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दिया, जिससे रेलवे, नहरों और खानों में काम करने के लिए कुशल श्रमिक तैयार किए जा सके।
6. धार्मिक और पारंपरिक शिक्षा पर प्रभाव : पारंपरिक गुरुकुल और मदरसा शिक्षा व्यवस्था कमजोर हुई। इससे समाज में आधुनिक और पारंपरिक दृष्टिकोणों के बीच संघर्ष भी हुआ।
हालांकि, कई संस्थानों ने पारंपरिक और आधुनिक शिक्षा का समन्वय बनाए रखने की कोशिश की।
7. महिलाओं की शिक्षा की शुरुआत : ब्रिटिश शासन के दौरान महिलाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया। पटना और अन्य शहरों में लड़कियों के लिए स्कूल खोले गए। यह महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम था।
8. बिहार में प्रेस और साहित्य का विकास : आधुनिक शिक्षा के प्रभाव से बिहार में पत्रकारिता और साहित्य का विकास हुआ। हिंदी और उर्दू में समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे, जिनसे समाज में जागरूकता बढ़ी। पटना से प्रकाशित होने वाला पहला हिंदी अखबार ‘बिहार बंधु’ (1872) आधुनिक शिक्षा का ही परिणाम था।
9. चुनौतियां और सीमाएं:
निष्कर्ष
ब्रिटिश शासन में आधुनिक शिक्षा ने बिहार के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया। इसने न केवल नए विचारों और तकनीकों का परिचय कराया, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के लिए भी मंच तैयार किया। हालांकि, यह शिक्षा प्रणाली मुख्यतः ब्रिटिश शासन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बनाई गई थी, फिर भी इसका दीर्घकालिक प्रभाव बिहार के विकास और नवजागरण में अत्यधिक सकारात्मक रहा।
बिहार में पाश्चात्य शिक्षा (प्रौद्योगिकी शिक्षा-समेत) का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
बिहार में पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह केवल सामाजिक सुधार और वैचारिक जागरूकता तक सीमित नहीं था, बल्कि राजनीतिक संगठन, नेतृत्व और जनता को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने का आधार भी बना।
1. वैचारिक जागरूकता का विकास
आधुनिक विचारधाराएं: पाश्चात्य शिक्षा ने बिहार के शिक्षित वर्ग को स्वतंत्रता, समानता, और लोकतंत्र जैसे आधुनिक मूल्यों से परिचित कराया।
ब्रिटिश शासन के दमनकारी स्वरूप को समझने और इसके खिलाफ संगठित विरोध का बीज बोने में यह शिक्षा सहायक रही।
राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह और जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने पाश्चात्य विचारों को आत्मसात कर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई।
राष्ट्रीय जागरूकता का प्रसार: पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीय समाज में राजनीतिक अधिकारों और राष्ट्रीय पहचान के महत्व को समझने में मदद की।
2. शिक्षा केंद्रों की भूमिका
पटना कॉलेज (1863) और पटना विश्वविद्यालय (1917) जैसे संस्थानों ने बिहार में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाई।
इन संस्थानों से शिक्षित युवा स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए।
छात्रों के बीच राष्ट्रीय आंदोलन का संदेश फैलाने के लिए ये संस्थान प्रमुख केंद्र बने।
दरभंगा महाराज जैसे स्थानीय शासकों ने आधुनिक शिक्षा के प्रसार में योगदान दिया।
3. नेताओं का निर्माण
बिहार के कई प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी पाश्चात्य शिक्षा से प्रेरित थे।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद: कानून की पढ़ाई के दौरान उन्होंने ब्रिटिश शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों को समझा।
जयप्रकाश नारायण: अमेरिका में पढ़ाई के दौरान समाजवाद और स्वतंत्रता के विचारों से प्रेरित होकर बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी।
अनुग्रह नारायण सिंह: पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने बिहार में राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया।
4. पाठ्यक्रम और आधुनिक दृष्टिकोण
पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीयों को यूरोपीय पुनर्जागरण और औद्योगिक क्रांति के विचारों से परिचित कराया।
इसने ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियों और शोषण की संरचना को समझने में मदद की।
भारतीयों ने अपने अधिकारों और स्वाधीनता की मांग को तर्कसंगत और आधुनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया।
5. सामाजिक सुधार आंदोलन में योगदान
पाश्चात्य शिक्षा से शिक्षित वर्ग ने सामाजिक सुधार आंदोलनों का नेतृत्व किया।
कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष: जाति प्रथा, बाल विवाह, और सती प्रथा के खिलाफ आंदोलन बिहार में भी जोर पकड़ा।
इन आंदोलनों ने समाज को स्वतंत्रता संग्राम के लिए मानसिक रूप से तैयार किया।
6. राजनीतिक संगठनों का गठन
पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने बिहार में कई राजनीतिक संगठनों की स्थापना की।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बिहार शाखा में कई शिक्षित नेता सक्रिय हुए।
छात्र आंदोलन: पाश्चात्य शिक्षित छात्रों ने भारत छोड़ो आंदोलन (1942) और असहयोग आंदोलन (1920) में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
7. स्वदेशी आंदोलन में भूमिका
पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीयों को स्वदेशी आंदोलन का महत्व समझने में मदद की।
विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार: शिक्षित वर्ग ने स्वदेशी वस्त्रों और उद्योगों को बढ़ावा दिया।
आर्थिक शोषण के प्रति जागरूकता ने आंदोलन को मजबूती दी।
निष्कर्ष
बिहार में पाश्चात्य शिक्षा ने स्वतंत्रता आंदोलन को वैचारिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से मजबूत किया। इसने न केवल राष्ट्रीय जागरूकता फैलाई, बल्कि नेतृत्वकर्ताओं और संगठनों के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई। पाश्चात्य शिक्षा से प्रेरित बिहार के नेताओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी दूरदर्शिता और कुशलता से देश को आजादी की ओर अग्रसर किया।
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