भारत में यूरोपियों का प्रवेश और अंग्रेजों की विजय
- भारत में व्यापार से संलग्न होने वाले यूरोपीय देश
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- पूर्तगाल - 15वीं 16वीं
- डच (नीदरलैंड/हॉवलैण्ड) - 17वीं
- ब्रिटिश - 17वीं
- डेच (डेनमार्क) - 17वीं
- फ्रेंच (फ्रांस) - 17वीं
- स्वीडिश(स्वीडेन) - 18वीं
- यूरोपियों द्वारा भारत से व्यपार हेतु कंपनी की स्थापना
- पुर्तगाल - 1505
- ब्रिटिश - 1600
- डच - 1602
- डेनिस - 1616
- फ्रेंच - 1664
- स्वीडिश - 1722
- भारत में प्रथम फैक्ट्री की स्थापना
- पुर्तगाल - कोचीन 1501-02
- ब्रिटिश - मसूलीपत्तनम 1611
- डच - मसूलीपत्तनम/पेटापूली 1606
- डेनिस - ट्रैंकोबार 1620
- फ्रेंच - सूरत 1668
- स्वीडिश - हरियरपुर बंगाल
- पुर्तगाल
- 1453 में उस्मानिया सल्तनत ने एशिया माइनर को जीत लिया और कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया फलस्वरूप पश्चिम के व्यापारिक मार्ग तुर्को के अधीन आ गयें। उस समय वेनिस और जेनेवा के व्यापारी यूरोप और एशिया से व्यापार करते थें।
- 1492 स्पेन का कोलम्बस भारत को खोजने निकला था लेकिन अमेरिका की खोज कर बैठा।
- 1498 में पुर्तगाल का वास्कोडिगामा केप ऑफ गुड होप के रास्ते कालिकट पहुँचा। वह जिस माल(मशाले) को लेकर वापस लौंटा वह पूरी यात्रा की कीमत के 60 गुणा दामों पर बिका।
- 16वी0 शताब्दी में गुलामों के व्यापार पर स्पेन और पुर्तगाल का एकाधिकार था।
- 1500-01 में पेड्रों अलवरेज कैबरल की नेतृत्व में पुर्तगालियों का अभियान आया परन्तु जमोरिन से इतने खराब संबंध हो गए कि उसे भाग कर नायर राज्य जाना पडा़। ततपश्चात वास्कोडिगामा के नेतृत्व में अभियान आया और नायर राज्य से बेहतर संबंध के कारण 1502 में कोचीन मालावार तट पर पहली फैक्ट्री स्थापित हुयी।
- पूर्तगालियों द्वारा एक स्थायी कंपनी एस्तादो द इन्दिया बनायी गयी जिसने व्यापार के साथ-साथ सामरिक महत्व पर भी जोड़ दिया । तत्पश्चात गर्वनर की नियुक्ति की गयी।
- फ्रेंकोइस डी अल्मेडा कम्पनी के पहले गर्वनर थे। उनकी ब्लू वॉटर पालिसी के कारण समुद्र पर (अफ्रीका के पूर्वी तट पर ) उनका कब्जा हो गया। अल्मेडा ने भारतीय मुसलमान, मूर एवं गुजरात के मुजफ्फरशाही शासक को 1509 में दीव में पराजित किया। साथ ही कोचीन (1501-02), कानानुर (1503), क्वीलोन (1503) में फैक्ट्री स्थापित हुयी।
- अल्फांसो डी अल्बुकर्क पूर्तगाली गर्वनरों में योग्यतम था। उसके प्रयास से बिना पूर्तगाल की इजाजत के हिन्द महासागर और अरब सागर में जहाज नहीं उतर सकता था। भारतीय या विदेशी शुल्क अदा कर हिन्द महासागर में जहाज उतारने लगे जिसके लिए आज्ञापत्र (cartaz) पूर्तगालियों से प्राप्त करना होता था।
- अल्बुकर्क ने 1510 में बीजापुर के आदिशाही शासक युसुफ आदिल खां से गोवा छीन लिया जिसपर 1961 तक पूर्तगालियों का कब्जा बना रहा। उसने हिन्दुमूल की महिलाओं से वैवाहिक संबंध के लिए प्रयास किए फलस्वरूप पूर्तगालियों और हिन्दुमूल की महिलाओं से न्यू गोअन सोसाईटी/यूरेशियन सोसाईटी बनी। ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार कराया। सति प्रथा को हतोत्साहित करने के लिए कानून बनाया।
- तत्पश्चात् पूर्तगाल के गर्वनर लॉपे सोरेज, नीनो डी कुन्हा, नौरिन्हा आदि ने विस्तार जारी रखा।
- विजयनगर के शासक कृष्णदेव राय 1509-29 और सदाशिव राय (1545-72) से पूर्तगालियों के बेहतर संबंध थे फलस्वरूप 1521 में भतकल, 1568 में होनावर तथा 1568 में मैंगलौर फैक्ट्री स्थापित हुयी।
- अकबर ने 1572 में गुजरात पर नियंत्रण के उपरांत पहली बार खम्भात में समुद्र के दर्शन किये और नौ सेना की महत्त्व समझी। ईसाई धर्म के बारे मे जानने के लिए उसने इबादत खाना में ईसाई विशेषज्ञों को आमंत्रित किया। अकबर के अनुरोध पर 3 जेस्वीट मिशन क्रमशः 1579,1590,1595 में गोवा से भेजा गया। पहला दल/मिशन रूडौल्प एक्वाविवाह, एंथोनी मौनसोरेट तथा फ्रैंसिस हेनरी डिक्वीज का था। पूर्तगालियों की इस निकटता के कारण मुगलों के सरकारी खर्च पर 1600 में लाहौर में तथा 1602 में आगरा में गिरजाधर स्थापित किये गए तथा धर्म प्रचार की स्वीकृति दी गयी। साथ ही 1779 में बंगाल तट पर हुगली में फैक्ट्री की इजाजत मिली। इसके अतिरिक्त 1799 में सूरत एवं दमन में फैक्ट्री की स्वीकृति मिली। बंगाल तट पर हुशैनशाही शासक महमुद शाह के समय 1536 में चिटगांव और सतगांव में फैक्ट्री की इजाजत पहले ही प्राप्त थी।
- पूर्तगाली भारत से मसाला, सूती कपड़ा, चंदन की लकड़ी एवं सजावटी समान ले जाते थे और बदले में सोना, चांदी, पारा, टीन, मूंगा, मखमल एवं ढ़ले हुए सिक्के लाते थे।
- पूर्तगालियों द्वारा छापाखाना, ऐनक, बग्धी गाड़ी, पारा, धड़ी का उपयोग करना, मक्का, तम्बाकू, आलू, टमाटर, गोबी की खेती की कला; केला, अनानास, पपीता, अमरूद, अल्फान्सों एवं जूआनी पड़ेरा कलमी आम की बागवानी को प्रारंभ किया गया।
- 17वीं शताब्दी में नौ सैनिक प्रतिस्पर्धा से पिछड़ जाने, पूर्तगाल की कम जनसंख्या, ब्राजील की खोज, धार्मिक असहिष्णुता के कारण भारत में पूर्तगातियों का सम्रराज्य समाप्त हो गया।
- डच कंपनी
- भारतीय व्यापार से संलग्न होने वला दूसरा यूरोपियन देश नीदरलैंड/हॉलैंड है । डच यहाँ की भाषा है।
- 1602 में यूनाइटेड इस्ट इंडिया कम्पनी ऑफ नीदरलैंड (वे रीगनादे ओस्ते इंडिसे कम्पेगनी) की स्थापना हुयी। एशिया में इस कम्पनी का मुख्यालय वटाविया इंडोनेशिया में था।
- गोलकुंडा सुल्तान (कुतुब शाही) से संबंध बनाया फलतः कोरामंडल तट पर 1606 में मसूलीपट्टनम ततपश्चात पैटापुली में फैक्ट्री की इजाजत प्राप्त की। 1634 में गोलकुंडा, 1641 में विमलपत्तनम का फैक्ट्री की इजाजत प्राप्त की। डचों को पुलिकट में सिक्के ढालने की इजाजत प्राप्त थी।
- जहाँगीर, शाहजहाँ एवं औरंगजेब डचों के लिए अनुकूल रहे फलस्वरूप जहाँगीर के समय 1617 लखनऊ, 1617 आगरा, 1620 कैम्बे, 1621 सूरत में फैक्ट्री की इजाजत, शाहजहाँ के समय 1633 हरीहपुर बंगाल, 1638 पटना, 1650 ढाका, 1653 चिनसुरा में फैक्ट्री की इजाजत । शाहजहाँ ने शोरा व्यापार का एकाधिकार प्रदान किया। औरंगजेब के समय 1658-59 हुगली, 1660 बालासोर एवं कासिम बाज़ार में फैक्ट्री।
- 1658 में डचों ने पुर्तगालियों से श्रीलंका को छीन लिया।
- सूती वस्त्र, शोरा, नील (वयाना आगरा के निकट एवं सरखेज अहमदाबाद के निकट सर्वोतम), अफीम (पटना, मालवा) चीनी, कच्चा रेशम, मसाला ले जाते थे एवं सोना, चाँदी, धातु के समान देते थे।
- अंग्रेजों ने 1559 में डचों को निर्णायक रूप से वेदरा (बंगाल) के युद्ध में पराजित किया तत्पश्चात डचों का प्रभाव भी समाप्त हुआ।
- मसाला व्यापार के कारण डचो का इंडोनेशिया पर अधिक निर्भरता वहाँ 1915 में डच इस्ट इंडिया कंपनी का पतन हुआ।
- फ्रांस
- लूई 14वें के दौर में वाणिज्यवाद को अपनाने वाले वित्त मंत्री जीन-बैप्टिस्ट कोलबर्ट ने फ्रांस की भागीदारी विश्व व्यापार में बढ़ाने के लिए एशियाई व्यापार से जुड़नें का निर्णय लिया। फलस्वरूप 1664 में फ्रांसीसी वाणिज्यिक कंपनी (फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी- कपंनी द इंडस औरियंतल) का गठन हुआ।
- औरंगजेब के समय 1664 में कंपनी भारत में प्रवेश की। 1667 में मुगल शासक के फरमान से व्यापार की स्वीकृति एवं सूरत में फैक्ट्री स्थापित करने की स्वीकृति के उपरांत 1667-68 में सूरत में प्रथम फैक्ट्री फ्रैंक केरो द्वारा स्थापित किया गया। औरंगजेब की स्वीकृति पर 1674 में बंगाल का क्षेत्र आवंटित किया गया जिसपर 1690 में साइस्ता खाँ के समय चंद्रनगर का किलेबंद फ्रंसिसी वस्ती स्थापित हुई।
- मुशिद कुली खाँ के इजाजत से 1708 में (बहादुर शाह -1 के काल में) में बालासोर फैक्ट्री स्थापित।
- गोकुंडा सुलतान की अनुमति से 1669 में मसूलिपटनम तथा तंजौर के नायक द्वारा 1676 में मद्रास के निकट जमीन फ्रांसीसी कंपनी को आवंटित किया गया जहाँ फोर्ट सेंट डेविड वस्ती की स्थापना हुयी।
- शेरखान लोदी, नालगौंडा (आंध्रप्रदेश) के स्थानीय शासक द्वारा 1673 में पछुम छेड़ी गॉव फ्रैंको मार्टिन और लेस्पीने फ्रांसिसियों को दिया गया जो पॉण्डिचेरी कहलाया एवं पूरे फ्रेंच कॉलोनी का मुख्यालय बना।
- लाईनो पहला फ्रांसीसी गर्वनर जनरल था। ड्यूमा (1735-43) के द्वारा फ्रांसीसियों को सर्वोच्च पर पहुँचाया गया। उसने दक्षिण भारत पर अपनी धाक बना ली।
- ब्रिटिश
- भारत, श्रीलंका एवं मलाया - अंग्रेज का अधिकार।
- 1599 में मर्चेट एडवेंचर्स नाम से जाने जाने वाले कुछ अंग्रेज व्यापारियों ने पूर्व से व्यापार करने के लिए एक कम्पनी बनाई- ईस्ट इण्डिया कम्पनीं।
- 31 दिसम्बर 1600 को महारानी एलिजाबेथ ने रॉयल चार्टर के द्वारा पूर्व से व्यापार करने का एकमात्र अधिकार दिया।
- 1608 में इस कम्पनी ने भारत के पश्चिमी तट पर सूरत में एक फैक्ट्री खोलने का निश्चय किया।
- कम्पनी ने कैप्टन हॉकिन्स को जहॉंगीर के दरबार में शाही आज्ञा लेने के लिए भेंजा।
- 1615 में उनका दूत सर टॉमस रो मुगल दरबार में पहुँचा।
- 1622 में चार्ल्स द्वितीय ने एक पुर्तगाली राजकुमारी से शादी की तो पुर्तगालियों ने उसे बम्बई का द्वीप दहेज में दिया।
- इंडोनेशिया के द्वीपों से हो रहे मसालों के व्यापार में भागीदारी को लेकर अंग्रेज कम्पनी और डच कम्पनी के बीच रह-रह कर होने वाली लड़ाई 1654 में आरंभ होकर 1667 में समाप्त हुई जब अंग्रेजो ने इंडोनेशिया के सारे दावें छोड़ दिये और बदले से डचों ने भारत में अंग्रेज बस्तियों को न छुनें का वायदा किया।
कम्पनी के व्यापारिक प्रभाव का विस्तार-
- अंग्रेजों ने दक्षिण में अपनी पहली फैक्ट्री मसूलीपत्तनम् में 1611 में स्थापित कीं। पर जल्द ही उनकी गतिविधियों के केन्द्र मद्रास हो गया जिसका पट्टा 1639 में वहाँ के स्थानीय राजा ने दिया। राजा ने किलेबंदी करने, सिक्के ढ़ालने और प्रशासन चलाने की अनुमति इस शर्त्त पर दी कि बंदरगाह से प्राप्त चुंगी का आधा भाग राजा को दिया जायेगा। यहाँ अंग्रेजो ने किलेबन्दी कर ली जिसका नाम फोर्ट सेन्ट जार्ज पड़ा।
- कम्पनी के कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने 1683 में मद्रास के अधिकारियों को लिखा - ‘‘ हम चाहते है कि आप धीरे-धीरे नगर ........... को किलाबंद करें और किले को इतना मजबूत बनाएं कि वह किसी भारतीय राजा या भारत में डच शक्ति के आक्रमण के सामने अडिग रहें ........ पर हम आपसे यह भी चाहते है कि आप अपना काम इस प्रकार जारी रखे कि नगर निवासी ही सारी मरम्मत और किलाबंदी का पूरा खर्च उठाएं ........।’’
- 1668 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने पुर्तगाल से बम्बई का द्वीप प्राप्त किया और उसे तत्काल किलाबंद कर दिया।
- पूर्वी भारत में अंग्रेज कम्पनी के आरंभिक फैक्ट्री में से एक की स्थापना 1633 में उड़ीसा में की गई।
- 1651 में बंगाल के हुगली नगर में व्यापार की इजाजत मिल गई।
- 1686 में अंग्रेजो ने हुगली को तहस-नहस कर दिया और मुगलों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दीं।
- औरंगजेब 1,50,000 रूपय हर्जाना लेकर फिर से अंग्रेजों को व्यापार करने की दजाजत दी।
- 1698 में कम्पनी ने सूतानाती, कलिकाता और गोविन्दपुरी की जमींदारी प्राप्त कर लीं। और वहाँ पर फोर्ट विलियम नाम का किला बनाया।
- 1717 में कम्पनी ने फर्रूखसियर से एक फरमान प्राप्त किया जिसमें उन्हें दोबारा 1691 में प्राप्त विशेषाधिकारों की मान्यता दी गई और उन्हें गुजरात एवं दक्कन तक बढ़ा दी गईं।
- भारत से इंगलैण्ड होने वाला आयात 1708 ई0 में 5,00,000 पौण्ड, 1740 में 17,95,000 पौण्ड हो गया।
- 18वी0 सदीं के मध्य तक मद्रास की जनसंख्या 3 लाख, कलकत्ता- 2 लाख और बम्बई - 70 हजार थी।
- अंग्रेज ईस्ट इण्डिया कम्पनी का स्वरूप पूरी तरह से बन्द निगम या इजारदारी जैसा था।
- 1744 ई0- 1763 तक 20 वर्षों तक भारतीय व्यापार, सम्पत्ति और क्षेत्र पर अधिकार के लिए फ्रांसीसी और अंग्रेज लड़ते रहें।
- फ्रांसीसी ईस्ट इण्डिया की स्थापना 1664 में हुईं। पूर्वी तट पर कलकत्ता के पास चन्द्रनगर और पाण्डिचेरी में उसने मजबूत स्थिति बना लिया।
- फ्रांसीसियों ने हिन्द महासागर में मॉरीशस के द्वीपों पर भी कब्जा कर लिया।
- फ्रांसीसी ईस्ट इण्डिया कम्पनी पूर्णतः फ्रांस सरकार पर निर्भर थी। इस कारण सरकार का कम्पनी पर बहुत अधिक नियंत्रण था।
- 1723 के बाद डायरेक्टरों की नियुक्ति फ्रांस सरकार करने लगी।
- यूरोप में फ्रांस और इंगलैण्ड का युद्ध 1742 में भड़क उठा जो 1748 में समाप्त हुआ। इस समय पाण्डिचेरी में फ्रांसीसी गर्वनर जेनरल डुप्ले था, जिसने यह नीति बनाई कि भारतीय शासकों के आपसी झगड़े में अपनी सेना के द्वारा हस्तक्षेप किया जाय।
- चन्दा साहब ने 1748 में कर्नाटक के नबाव के खिलाफ षडयंत्र करना शुरू किया।
- हैदराबाद में निजाम-उल्-मुल्क आसफजाह के मरने के बाद उसके बेटे नासीरजंग और पोतें मुज्जफरजंग में सत्ता के लिए गृह युद्ध छिड़ गया। इसी स्थिति का डुप्ले ने लाभ उठाया और चन्दा साहब एवं मुजफ्फर जंग से गुप्त समझौता कर लिया।
- 1749 में इन तीन सहयोगियो ने अंतूर के युद्ध में अनवरउद्दीन को हराकर मार डाला। इससे खुश होकर चन्दा साहब ने फ्रांसीसियों को पाण्डिचेरी के निकट 80 गाँव दे दिया।
- फ्रांसीसी हैदराबाद में भी सफल रहें। नासिर जंग मारा गया और मुजफ्फर जंग निजाम अर्थात दक्कन का सूबेदार बन गया। नए निजाम ने पांडिचेरी के निकट की जमीनें और मसुलीपट्टम की प्रसिद्ध नगर फ्रांसीसी कम्पनी को पुरस्कार में दे दिया। उसने कंपनी को 5 लाख रूपये और उसकी सेनाओं को भी 5 लाख रूपये दिए। डुप्ले को भी 20 लाख रूपये के साथ एक जागीर भी मिली जिसकी वार्षिक आय 1 लाख रूपये थीं। इसके अलावा पूर्वी तट पर कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक के मुगल क्षेत्रों का उसे आनरेरी गर्वनर भी बना दिया गया।
- डुप्ले ने अपने सर्वश्रेष्ठ अफसर बुसी को फ्रांसीसी सेना की एक टुकड़ी के साथ हैदराबाद में नियुक्त किया।
- मुजफ्फरजंग की मृत्यु के बाद बुसी ने फौरन निजाममुल-मुल्क के तीसरे बेटे सलाबतजंग को गद्दी पर बिठा दिया। बदलें में नए निजाम ने फ्रांसीसियों को आंध्र का वह क्षेत्र पुरस्कार में दे दिया जिसे उत्तरी सरकार कहा जाता है।
- रार्बट क्लाइब (उस समय कंपनी की सेवा में एक क्लर्क था) ने केवल 200 अंग्रेज और 300 भारतीय सैनिको को लेकर कर्नाटक की राजधानी अर्काट पर हमला किया और उसे जीत लिया।
- चंदा साहब और फ्रांसीसियों ने मजबूर होकर त्रिचुरापल्ली का घेरा उठा लिया।
- अंत में भारतीय युद्ध के भारी खर्च से परेशान होकर और अमेरिकी उपनिवेशों के हाथ से निकल जाने के डर से फ्रांसीसी सरकार ने समझौता वार्ता आरंभ की और 1754 में उसने अंग्रेजो की यह मांग मान ली कि भारत से डुप्ले को वापस बुला लिया जाए।
- अंग्रेज और फ्रांसीसी के बीच निर्णायक मुठभेड़ 22 जनवरी 1760 वाण्डीवाश में हुई जब अंग्रेज जनरल आयरकुट ने नल्ली को हरा दिया। युद्ध का अन्त 1763 में पेरिस समझौते के साथ हुआ। इसके अनुसार फ्रांसीसियों को भारत स्थित सारी फैक्टीरियों लौटा दी गई, जहाँ वे किलेबन्दी और नही कर सकते थे एवं सेना नहीं रख सकते थें।
बंगाल
- 1756 में सिराजउद्दौला अपने दादा अलीवर्दी खाँ के जगह बैठा। अंग्रेज उस समय दस्तक का दुरूपयोग करते थे और कलकत्ता आने वाले भारतीय मालों पर भारी महसूल लगा दिये थें। कम्पनी ने कलकत्ता की किलेबन्दी शुरू कर दीं। सिराजउद्दौला चाहता था कि वे व्यापारी है, व्यापारी बन कर रहे और कलकत्ता एवं चन्द्ननगर की अपने किलेबंदियाँ गिरा दें। फ्रांसीसी कम्पनी ने तो इस आज्ञा का पालन किया लेकिन कर्नाटक विजय से हुए महत्वाकांक्षी अंग्रेज नहीं मानें।
- 1693 ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी का चार्टर समाप्त हो जाने पर संसद ने पूर्व में व्यापार करने का अधिकार उससे छीन लिया और कम्पनी ने ब्रिटेन के सम्राट, संसद और राजनेता को भारी रिश्वत दी। केवल एक वर्ष में 80,000 पौण्ड रिश्वत में दिये थे।
- जल्दबाजी में पर्याप्त तैयारी किये बिना कासिम बाजार पर सिराजउद्दौला ने कब्जा कर, कलकत्ता की ओर कुच किया और 20 जून 1756 को फोर्ट विलियम पर अधिकार कर लिया।
- अंग्रेज अधिकारियों ने समुद्र के निकट फल्टा में शरण लीं।
- गद्दारी का तानाबानाः-
मीर जाफर - मीर बख्शी
माणिक चन्द - कलकत्ता का अधिकारी।
अमीचन्द - एक धनी व्यापारी
जगत सेठ - बंगाल सबसे बड़ा बैंकर।
खादिम खान - इसकी कमान में नवाब की सेना का बड़ा भाग।
- मद्रास में एडमिरल वॉटसन और क्लाइव (कर्नल) की कमान में एक बड़ी नौ सैनिक और सैनिक सहायता आ पहुँची।
- क्लाइव ने 1757 के आरंभ में दोबारा कलकत्ता को जीत लिया।
- 23 जून 1757 मुर्शीदाबाद से 20 मील दूर पलासी के मैदान में उनकी सेना आमने-सामने हुई।
- पलासी युद्ध में अंग्रेज के केवल 29 और नबाव के लगभग 500 लोग मरे।
- मीर जाफर और राय दुर्लभ जैसे गद्दारों के कमान में नवाबों की काफी सेना युद्ध में ही नहीं उतरीं।
- नवाब के सैनिकों का एक बहुत छोटा हिस्सा ही मीर मदन और मोहन लाल की अगुआई में लड़ा।
- नवाब को मजबूर होकर भागना पड़ा, मगर मीर जाफर के बेटे मिरन के हाथों पकड़ा गया और मारा गया।
- बंगाल के कवि नवीन चन्द्र सेन के अनुसार पलासी के युद्ध के बाद भारत के लिए शाश्वत दुःख की काली रात का आरंभ हुआ।
- मीर जाफर नवाब घोषित। उसने अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में मुक्त व्यापार की अनुमति दी तथा कलकत्ता के पास 24 परगना की जमींदारी दीं।
- कलकत्ता पर हमले के हरजाने के रूप में मीर जाफर ने कम्पनी को और नगर के व्यापारियों को 1 करोड़ 70 लाख रूपये दिये साथ ही कम्पनी के अधिकारियों को उपहार अर्थात् घूस।
क्लाइव को - 20 लाख
वाट्स - 10 लाख।
कम्पनी और उसके नौकरो - 3 करोड़ रूपये (क्लाइव का अनुमार)
- एडवर्ड थॉमसन और जी0टी गैरेर (ब्रिटिश इतिहासकार) :-किसी क्रान्ति का आयोजन करना दुनिया का सबसे लाभदायक खेल समझा गया है। अंग्रेजों के मन में सोने का ऐसा लालच भर गया जो कोरेतेस और पिजारो के काल के स्पेन वासियों के बाद कभी देखने को नहीं मिला था। अब खासतौर पर बंगाल को तब तक चैन नहीं मिलने वाला था जब तक उसके खून की एक-एक बून्द न निचूड़ जाए।
- कर्नल मालसन ने लिखा है- ‘‘कम्पनी के अधिकारियों का अब एक ही उद्देश्य था कि जितना लूट सको उतना लूटो और यह की मीर जाफर सोने की ऐसी थैली है जिसमें जब भी चाहे हाथ डाल लों।’’
- अक्टूबर 1760 में अंग्रेजों ने मीरजाफर को मजबूर किया कि वह अपने दामाद मीर कासिम के हक में गद्दी छोड़ दें।
- मीर कासिम ने इस कृंपा के बदले, कम्पनी को वर्धमान, मिदनापुर और चटगॉव जिलों की जमींदारी सौंप दीं। और बड़े अंग्रेज अधिकारियों को अच्छे-अच्छे उपहार दिये, जिसकी कुल कीमत 29 लाख रूपये थी।
- हाल ही में एक ब्रिटिश इतिहासकार पर्सीबल स्पीयर ने- इस काल को खुली और निर्लज्जता पूर्ण लूट पाट का युग बताया।
- मीर कासिम ने आंतरिक व्यापार पर सभी महसूल खत्म कर दियें।
- मीर कासिम 1763 में हरा दिया गया। तब वह अवध भाग गया । जहाँ उसने अवध के नवाब शुजाउद्दौला और भगोड़े मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय से एक समझौता किया।
- कम्पनी की सेना के साथ इन तीनों सहयोगियों की मुठभेड़ 22 अक्टूबर 1764 को बक्सर में हुई जिसमें ये तीनों हारें।
- इस युद्ध ने अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा का निर्विवाद शासक बना दिया और अवध भी इनकी दया का पात्र हो गया।
- क्लाइव 1765 में बंगाल का गर्वनर बना।
- 1763 में अंग्रेजों ने मीर जाफर को दुबारा नवाब बना दिया । मीर जाफर के मरने के बाद उसके दूसरे बेटे निजामुउद्दौला को गद्दी पर बैठाया और बदलें में उसे 20 फरवरी 1765 को एक संधि की। जिसके अनुसार वह अपने अधिकांश सेना को भंग करेगा और एक नायब सूबेदार के सहारे बंगाल का शासन चलाना था, जिसकी नियुक्ति कम्पनी करती थीं। जिसे कम्पनी की स्वीकृति के बिना हटाया नहीं जा सकता था। इस तरह कम्पनी बंगाल के प्रशासन पर पूरा अधिकार जमा लिया।
- शाहआलम द्वितीय से कम्पनी ने बंगाल, उड़ीसा और बिहार की दिवानी (राजस्व वसूली) प्राप्त कर ली। बदले में कम्पनी ने 26 लाख रूपये शाहआलम द्वितीय को दिये तथा उसे कड़ा और इलाहाबाद के किले जीत कर दिये।
- सम्राट 6 वर्षों तक इलाहाबाद के किलों में कैद होकर रहा।
- अवध के नवाब शुजाउद्दौला को भी लड़ाई के हर्जाने के रूप में 50 लाख रूपये देने पड़े।
बंगाल में प्रशासन की दोहरी व्यवस्था-
- 1765 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी बंगाल की वास्तविक स्वामी हो गईं।
- क्लाइव के शब्दों में - ‘‘मैं केवल इतना ही कहूँगा की स्वेच्छाचारी शासन, भ्रांति, घूसखोरी, भ्रष्टाचार और जबरन धन खसोटने का ऐसा दृष्य बंगाल के अलावा किसी भी देश में कभी देखा सुना नहीं गया है। इतनी अन्यायपूर्ण लूट-खसोट से कम्पनी बेसूमार सम्पत्ति बटोरने में जुटी हुई थी। जब से मीर जाफर ने दो बार सूबेदारी संभाली थी। बंगाल, बिहार और उड़ीसा, इन तीनों प्रांतों से 30 लाख स्टर्लिंग पाउण्ड की राजस्व वसूली का काम सीधे कम्पनी के अधिकारियों के मुट्ठी में आ गया था। कम्पनी के अधिकारी नवाब से लेकर सत्ता से जुड़े छोटे-छोटे जमींदारों तक प्रत्येक व्यक्ति पर शुल्क थोप देते थे और उसे जबरदस्ती वसूल करते थें।
- अब बंगाल से प्राप्त राजस्व से ही अंग्रेज भारतीय माल खरीदते और विदेश में बेचते, इस धन को कम्पनी की लागत पूंजी समझा जाता और इसे कम्पनी के लाभ के रूप में स्वीकार किया जाता।
- 1767 में ब्रिटिश सरकार ने कम्पनी से 4 लाख पौण्ड देने का आदेश दिया।
- 1766-67 और 1768 ई0 में बंगाल से लगभग 57 लाख पौण्ड की धन निकासी हुई।
- 1707 में बंगाल में भीषण अकाल, जिसमें वहाँ की एक तिहाई जनता प्रभावित हुईं।
वरेन हेस्टिगस (1772-85) और कार्नवालिस (1786-93) के युद्ध
- 1766 में उन्होंने मैसूर के हैदर अली पर हमले में हैदराबाद के निजाम का साथ दिया। पर हैदरअली ने मद्रास कॉन्सिल को अपनी शर्तों पर शांति सन्धि करने के लिए मजबूर कर दिया।
- प्रथम आंग्ला मराठा युद्ध 1775 में अंग्रेजो का मराठा से टकराव। तब मराठों में सत्ता के लिए संघर्ष, जिसमें बालक पेशवा माधवराय द्वितीय के समर्थक नाना पड़नवीस के नेतृत्व में एक ओर और रघुनाथ राव के नेतृत्व में दूसरी ओर। बम्बई ब्रिटिश अधिकारियों ने रघुनाथ राव की ओर से हस्तक्षेप किया। धन की लालच मराठों से एक लम्बी लड़ाई में उलझे जो 1775-1782 तक चलीं। सभी मराठा सरदार, पेशवा और उसके प्रधानमंत्री नाना पड़नवीस की ओर से, एक हो गयें। इसी समय हैदरअली और निजाम ने कंपनी के खिलाफ युद्ध छेड़ा।
- 1776 में अमेरिका की जनता ने विद्रोह कर दिया। फ्रांसीसियों ने भी युद्ध के द्वार खोल दियें। गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने दृढ़ता पूर्वक कदम उठाया और युद्ध थम गया।
- 1782 की सलवाई की संधि के साथ संधि स्थापित हुईं।
- 1780 में हैदरअली से पुनः युद्ध। हैदरअली ने अंग्रेजी सेना को कर्नाटक में कई बार हराया। लगभग पूरा कर्नाटक उसके कब्जे में लेकिन अंग्रेजों ने कूटनिति से फिर उसे बचा लिया।
- वरेन हेस्टिंगस ने निजाम को गूंटूर का किला देकर तोड़ लिया और मैसूर के खिलाफ गठजोड़ किया।
- 1781-82 में उसने मराठों से शांति समझौता कर लिया।
- जुलाई 1781 में आयुरकुट की कमान में ब्रिटिश सेना ने पोर्टो नौवो में हैदरअली को हराकर मद्रास को बचा लिया।
- दिसम्बर 1782 में हैदरअली की मृत्यु।
- मार्च 1784 में शांति सन्धि कर ली एक-दूसरों को जीते हुए इलाके लौंटा दीं।
- मैसूर के साथ अंग्रेजों का तीसरा टकराव उनके लिए अधिक लाभप्रद सिद्ध हुआ।
- 1789 में युद्ध भड़क उठा और अन्ततः 1792 में टिपू की हार हुई। श्रीरंगपट्टनम् की सन्धि हुई, जिसके अनुसार टीपू ने अपना आधा राज्य और 330 लाख रूपया हर्जाना दिया।
- भारत में ब्रिटिश शासन का दूसरा बड़ा प्रसार लार्ड वेलेजली के काल में हुआ।
- वेलेजली ने फैसला किया कि समय आ चुका है कि जितने अधिक भारतीय राज्य संभव हो, ब्रिटिश नियंत्रण में लाए जाएं।
- 1797 तक मैसूर और मराठो की शक्ति क्षीण हो चुकी थीं।
- अपने राजनीतिक उद्देश्य पूरे करने के लिए वेलेजली ने तीन उपायों को सहारा लिया - सहायक संधि प्रथा, खुला युद्ध और पहलें से अधीन बनाए जा चुके शासकों का इलाका हड़पना।
- सहायक संधि के अनुसार आम तौर पर भारतीय शासक को यह भी मानना पड़ता था कि वह अपने दरबार में एक ब्रिटिश रेजीडेंट रखेगा, अंग्रेजों की स्वीकृति के बिना किसी और यूरोपीय को अपनी सेवा में नहीं रखेगा और गर्वनर जनरल से सलाह किए बिना किसी दूसरे भारतीय शासक से कोई वार्ता नहीं करेगा। इसके बदले अंग्रेज उस शासक की दुश्मनों से रक्षा करने का वचन देतें।
- लार्ड वेलेजली ने 1798 और 1800 में हैदरबाद के निजाम के साथ सहायक संधिया कीं। निजाम ने नगद पैसा देने के बजाए कंपनी को अपनी राज्य का एक भाग दे दिया।
- 1801 में अवध नवाब को सहायक संधि के लिए मजबूर किया गया। एक बड़ी सहायक सेना के बदले में नवाब को मजबूर होकर अपना लगभग आधा राज्य अंग्रेजों के देना पड़ा जिसमें रूहेलखण्ड का इलाका और गंगा-यमुना का दोआब आ जाते थें। नवाब की अपनी सेना लगभग पूरी तरह भंग कर दी गई और अंग्रेजों को यह अधिकार मिल गया कि वे उसके राज्य के किसी भी भाग में अपनी सेना तैयार कर सकें।
- टीपू सुल्तान ने एक ब्रिटिश विरोधी गठजोड़ बनाने के लिए अफगानिस्तान, अरब और तुर्की को भी अपने दूत भेजें।
- ब्रिटिश सेना ने 1799 में टीपू पर हमला किया। टीपू ने अभी भी गिड़गिड़ाकर शांति की भीख मांगने से इंकार कर दिया। उसने गर्व पूर्वक घोषणा की कि- ‘‘काफिरों का दयनीय दास बनकर और उनके पेंशन प्राप्त राजाओं और नवाबों की सूची में शामिल होकर जीने से अच्छा एक योद्धा की तरह मर जाना है।’’ अपनी राजधानी की रक्षा करते हुए वह 4 मई 1799 की बहादुरी का मौंत मरा।
- टीपू का लगभग आधा राज्य अंग्रेजों और उनके सहयोगी निजाम के बीच बंट गया। मैसूर राज्य का शेष भाग उन राजाओं के वंषजो को वापस दे दिया गया जिनसे हैदर अली ने राज्य छीना था।
- 1801 में वेलेजली ने कर्नाटक के पिट्ठू नवाब पर एक नई संधि लाद दी और उसे मजबूर किया कि वह पेंशन लेकर अपना राज्य कंपनी को सौंप दें।
- मैसूर से मलाबार समेत जो क्षेत्र छीने गए थें उनमें कर्नाटक को मिलाकर मद्रास प्रेसिडेंटी बनाई गई जो 1947 तक जारी रही।
- इसी तरह तंजौर और सूरत राज्य भी हड़प लिए गए।
- इस समय मराठा साम्राज्य पाँच बड़े सरदारों का एक महासंघ था। ये थे- पूना-पेशवा-गायकवाड़,ग्वालियर- सिंधिया, इंदौर- होल्कर और नागपुर- भोसलें।
- 25 अक्टूबर 1802 को जब दीवाली के दिन होल्कर ने पेशवा और सिंधिया की मिली-जुली सेना को हरा दिया तो कायर पेशवा बाजीराव द्वितीय भागकर अंग्रेजों की शरण में जा पहुँचा और वर्षः 1802 के अंतिम दिन उसने बसाई में एक सहायक संधि पर हस्ताक्षर कर दिए।
- जब सिंधिया और भोसले अंग्रेजों से लड़ रहे थे तो होल्कर चुप-चाप दूर पड़ा था और गायकवाड़ अंग्रेजों की मदद कर रहा था। फिर जब होल्कर ने अपनी तलवार उठाई तो भोसले और सिंधिया ने अपना बदला चुकाया।
- दक्षिण में वैलेजली के कमान में ब्रिटिश सेना ने असल में सितम्बर 1803 में और फिर अरगॉवर्ण नवम्बर 1803 में सिंधिया और भोसले की मिली-जुली सेना को हराया।
- मेलार्ड लेक ने नवम्बर की पहली तारीख को वासवाड़ी में सिंधिया की सेना को तहस-नहस कर दिया और अलीगढ़, आगरा और दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
- उड़ीसा के समुद्र तट पर और गंगा यमुना दोआब पर अंग्रेजों का पूर्ण अधिकार हो गया और पेशवा उनके हाथों की एक कठपुतली हो गया।
- होल्कर (वेलेजली) अंत तक अंग्रेजो से लड़ता रहा। होल्कर के सहयोगी भरतपुर के राजा ने लेक को काफी नुकसान पहुँचाया।
- कम्पनी का कर्जः 1797 - 170 लाख पौण्ड।
1806 - 310 लाख पौण्ड।
- वेलेजली को वापस बुला लिया गया।
- जनवरी 1806 में राजघाट की संधि के द्वारा होल्कर के साथ शांति स्थापित कर लिया और उसे राज्य का एक बड़ा भाग लौटा दिया।
- ईस्ट इण्डिया कम्पनी सबसे बड़ी शक्ति वेलेजली के समय में बना।
- कम्पनी के न्यायिक सेवा के एक अधिकारी हेनरी रौबखला ने 1805 में लिखा- ‘‘भारत में मौजूद हर अंग्रेज गर्व से भरा हुआ है और अँकड़ा हुआ है और वह अपने को एक विजित जनता का विजेता मानता है और अपने नीचे की हर व्यक्ति को श्रेष्ठता की भावना के साथ देखता हैं।’’
- लार्ड हेस्टिगंज के काल में प्रसार (1813-22)
- पेशवा ने नवम्बर 1817 में पूना में अंग्रेज रेजिडेंट पर हमला किया। अप्पा साहब ने नागपुर स्थित रेजीडेंट पर हमला किया और माधव राय होल्कर युद्ध की तैयारी करने लगा।
- पेशवा को गद्दी से उतारकर और पेशन देकर कानपूर के पास बिहार में हेस्टिंग्ज ने बिठा दिया।
- होल्कर और भोसले ने सहायक सेना रखनी स्वीकार कर लिया।
- पेशवा की जमीन पर सतारा का छोटा सा राज्य बनाया गया जो पूरी तरह अंग्रेजों पर आश्रित था।
- ब्रिटिश शासन को सुदृढ़ बनाने का काम (1818-57)
- सिंध की विजयः सिंध विजय संभावित रूसी हमले का परिणाम था।
- 1832 के सिंध के तहत् के नदी और सड़क को ब्रिटिश व्यापार के लिए खोला गया।
- 1839 में सिंध के अमीर कहलाने वाले सरदारों ने सहायक संधि पर हस्ताक्षर किया।
- 1843 चाल्से नेपियर ने एक संक्षिप्त अभियान के बाद सिंध का अधिग्रहण कर लिया और अपनी डायरी में लिखा- ‘‘हमें सिंध पर कब्जा करने का कोई हक नहीं है फिर भी हम ऐसा करेंगे और यह बदमाशी का एक बहुत ही लाभदायक, उपयोगी और मानवीय उदाहरण होंगा।’’ इसके लिए उसे 7 लाख रूपये का पुरस्कार मिलें।
- पंजाब की विजय
- जून 1839 में रणजीत सिंह की मृत्यु।
- 1809 में रणजीत सिंह के साथ स्थाई मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर अंग्रेजों ने किया था।
- 13 दिसंबर 1845 को दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया। इस विदेशी खतरें के आगे हिंदू, मुसलमान और सिख फौरन एक हो गए।
- प्रधानमंत्री राज लालसिंह और प्रधान सेनापति मिस्सर तेज सिंह का शत्रु के साथ गुप्त पत्र व्यवहार जारी था। फलतः पंजाब की सेना हार स्वीकार करने और 8 मार्च 1846 को लाहौर में एक अपमान जनक समझौते पर हस्ताक्षर करने को बाध्य हो गई।
- अंग्रेजों ने जालंधर के दोआब को हड़प् लिया और 50 लाख रूप्ए नगद लेकर जम्मू और कश्मीर को राजा गुलाब सिंह डोगरा के हवाले कर दिया। पंजाब की सेना को घटाकर 20,000 पैदल और 12,000 घुड़सवार सेना तक सीमित कर दिया गया और एक भारी ब्रिटिश सेना लाहौर में तैनात कर दीं।
- बाद में 16 दिसम्बर 1846 को एक और समझौता हुआ जिसके अनुसार राज्य के एक-एक विभाग के सारे मामलों में लाहौर स्थित अंग्रेज रेजिमेंट को पूरा अधिकार दे दिया गया। इसके अलावा राज्य के किसी भी भाग में सेना तैनात करने की छूट अंग्रेजों को मिल गई। और भारत सरकार के कार्यों का मार्गदर्शन एवं संचालन बोर्ड ऑफ कंट्रोल करता है। शासन गवर्नर जनरल तथा 3 सदस्यों वाली एक कैंसिल के हाथों दे दिया।
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- बम्बई और मद्रास युद्ध, कुटनिति और राजस्व मामलों में स्पष्ट शब्दों में बंगाल के अधिन हो गया।
- 1776 में गवर्नर जनरल को यह अधिकार दिया गया कि वह भारतीय साम्राज्य की शांति, सुरक्षा या उसके हितों को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण प्रश्नों पर अपने कौन्सिल की राय ठुकरा सकें।
- 1813 के चार्टर एक्ट के अनुसार भारतीय व्यापार पर कम्पनी का एकाधिकार समाप्त हो गया। चाय और चीन के साथ व्यापार छोड़कर।
- 1833 चार्टर एक्ट के अनुसार चाय एवं चीनी व्यापार पर से कंपनी का एकाधिकार समाप्त।
- 6000 मील दूर रहकर प्रशासन चलाने में दिक्कत थी इसलिए गवर्नर जनरल इन कौंसिल को सर्वेच्च अधिकार दे दिया।
- 1793 में गर्वनर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल सरकर के लिए दो प्रमुख निर्देष जारी किए-
- राजनितिक सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- भारत पर अधिकार को ईस्ट इण्डिया कंपनी तथा ब्रिटिश राष्ट्र के लिए यथासंभव उत्तरदायी बनाना।
भारत में अंग्रेजो की आर्थिक नितियाँ (1957-1852)
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- प्रसिद्ध उपन्यास रॉबिन्सन क्रुशो के लेखक डेनियल डिफो की शिकायत थी कि- ‘‘ भारतीय वस्त्र हमारे घरो, हमारे कक्षों तथा हमारे श्यनगारों में प्रवेश कर चुके हैं; पर्दे, गद्दे, कुर्सिया और अन्त में हमारे बिस्तर भी मलमल या भारतीय वस्तुओं के अलावा कुछ नहीं रहे।’’
- 1720 तक छापेदारी या रंगे सूती वस्त्रों के व्यापार पर प्रतिबंध।
- 1760 में एक भद्र महिला को आयातित रूमाल पर 200 पौण्ड की जुर्माना।
- हॉलैण्ड को छोड़कर दूसरे यूरोपिय देशों ने भी प्रतिबंध/आयात शुल्क लगाया।
- भारतीय हस्तशिल्प को असल धक्का 1813 में लगा जबकि उसके हाथों से विदेशी व्यापार ही नहीं भारतीय व्यापार भी छिन गईं।
- मिल मजदूरों का मार्मिक वर्णन चार्ल्स डिकैन ने अपने उपन्यास में किया है। अब अंग्रेज रेसिडेंट ही पंजाब का वास्तविक शासक बन बैठा और पंजाब अपनी स्वाधीनता खोकर एक अधीन राज्य बन गया।
- 1848 में स्वतंत्रता- प्रेमी पंजाबियों ने अनेकों स्थानीय विद्रोह दिए। इनमें से दी प्रमुख विद्रोहो के नेता मुल्तान के मूलराज और लाहौर के पास छतर सिंह अटारीवाला थें। एक बार फिर पंजाबियों की निर्णायक हार हुईं। इस अवसर का फायदा उठाकर लार्ड डलहौजी ने पंजाब को हड़प लिया।
- डलहौजी की अधिग्रहण की नीति (1848-56) :
राज्य विलय का सिद्धान्त (Doctrine of lape)
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- 1848- सतारा, 1854- नागपुर, झांसी
- कर्नाटक और सूरत के नवाब और तंजौर के राजा की उपाधि छीन ली।
- भूतपूर्व पेशवा बाजीराव-2 जिसे बिठुर का राजा बना दिया गया था। उसके मरने पर उसके पेशन, उसके दत्तक पुत्र- नाना साहब को देने से मना करा दिया।
- अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर नवाब वाजीद अली शाह 1856 में हड़प लिया गया।
- 1853 में डलहौजी ने निजाम से बरार का कपास उत्पादक प्रान्त ले लिया।
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की आर्थिक नितियाँ और प्रशासनिक ढाँचाः
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- 1767 में लाभांश दर - 10 प्रतिशत,
- 1771 में लाभांश दर - 12 प्रतिशत
- ब्रिटेन में भारत से लौटे अधिकारियों को नवाब कह कर चिढ़ाया जाता था।
- 1762 में संसद ने एक कानून बनाकर कंपनी के लिए ब्रिटिश खजाने में 4 लाख पौण्ड देना अनिवार्य बना दिया।
- शास्त्रीय अर्थशास्त्र के संस्थापक एडम स्मिथ ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक राष्ट्रों सम्पत्ति (वेल्थ ऑफ नेशन्स) में समिति सदस्यता वाली कम्पनियों की निन्दा कीं। इस तरह इस प्रकार की समिति कम्पनियॉं अनेक अर्थों में क्षतिकारी है। वे जिन देशों में स्थापित होती है। उनके लिए कमोवेश असुविधा जनक होती हैं और जिन देशों में दुर्भाग्य से उनकी सरकार स्थापित हो चुकी है। उनके लिए विध्वंस का कारक होती है।
- सम्राट जार्ज- 3 कम्पनी के संरक्षक थें।
- 1773 की रेग्युलेटिंग ऐक्ट कम्पनी की गतिविधियों से संबंधित पहला महत्वपूर्ण संसदीय कानून था। इस कानून के अन्तर्गत कोर्ट ऑफ डाइरेक्टसे के गठन में परिवर्तन। ब्रिटिश सरकार की निगरानी।
- 1784 में पिट्स इंडिया एक्ट - भारतीय मामलों की देखरेख के लिए 6 कमिश्नर इसे बोर्ड ऑफ कंट्रोल कहा जाता है जिसमें दो कैबिनेट होते थे। कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स।
- भारत को 1794 में पौण्ड के ब्रिटिश सूती कपड़ों का निर्यात हुआ मगर 1813 में यह निर्यात बढ़कर 1 लाख 10 हजार पौण्ड अर्थात् सात सौ गुना हो गया।
- आर0सी0 दत्त ने अपनी पुस्तक- ‘‘दि एकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया’’ में लिखा है कि 1812 के पार्लियामेन्टी के सेलेक्ट कमेटी का उद्देष्य- ‘‘यह पता लगाना था कि उनकी जगह ब्रिटिश कारखानेदारों को कैसे दी जाय और भारतीय उद्योगों की कीमत पर ब्रिटिश उद्योगों को कैसे प्रोत्साहित किया जाय।’’
- ब्रिटिश सूती कपड़ों का निर्यात 1813में 11 लाख पौण्ड था जो 1856 में बढ़कर 63 लाख पौण्ड हो गया।
- 1824 में भारत की मोटे सूती कपड़ों पर आयात शुल्क की दर 67.5% तथा भारतीय मलमल पर 37.5% थीं।
- भारतीय चीनी पर उसकी लागत से तीन गुनी अधिक शुल्क, कुछ मामलों में यह शुल्क 400% से भी अधिक हैं।
- ब्रिटिश व्यापारिक नीति के बेमानी का वर्णन ब्रिटिश इतिहासकार एच.एस. विल्सन कहते हैं- उनके अनुसार अंग्रेजों ने भारतीय उद्योग का गला घोंट दिया।
- 1856 में भारत ने-
- 43 लाख पौण्ड- कच्चा कपास
- 8 लाख 10हजार पौण्ड - तैयार सूती माल।
- 29 लाख पौण्ड - अनाज।
- 17 लाख 30 हजार पौण्ड- तील।
- 7 लाख 70 हजार पौण्ड- कच्चा रेषम का निर्यात
- हाउस ऑल लॉडर्स के सेलेक्ट कमेटी के अध्यक्ष और बाद में भारत के गवर्नर जनरल ऐलनवरों ने 1840 में स्वीकारा कि भारत से आशा की जाती है कि वह इस देश को प्रतिवर्ष 20 -30लाख पौण्ड स्टर्लिंग के बीच कोई रकम भेजे और बदलें में मामूली मूल्य के सैनिक भण्डारों के अलावा किसी बात की आशा नहीं कीं।’’
- मद्रास के बोर्ड आफ रेवेन्यू के अध्यक्ष जॉन सुलविन- हमारी प्रणाली बहुत कुछ स्पंज की तरह काम करती है जो गंगा की तटों से सभी अच्छी चीजों को सोखकर टेम्स के तटों पर निचोड़ देती है।’’
- 19 वीं0 शताब्दी के अंत में आर्थिक दोहन भारत की राष्ट्रीय बचत का लगभग एक तिहाई था।
- कलकत्ता से दिल्ली तक ग्रैण्ड ट्रैंक रोड पर 1839 से काम आरंभ हुआ जो 1850 के दशक में पूरा हुआ।
- जार्ज स्टीवेंसन का बनाया पहला रेल इंजन इंग्लैंड में 1814 में पटरियों पर चलाया गया।
- भारत में रेल लाइन विछाने का पहला प्रस्ताव 1831 में मद्रास में आया जिसे छोड़े खिंचने वाले थें।
- भारत में भाप से चलने वाले रेलों का पहला प्रस्ताव 1834 ई0 में इंग्लैण्ड में रखा गया।
- भारत सरकार ने जमानत दी कि वित्त पतियों को उनकी पूंजी पर कम से कम 5 प्रतिशत लाभ मिलेगा।
- बम्बई और थाणे के बीच पहली रेलवे लाईन यातायात के लिए 1853 में खोल दी गई।
- 1849 में भारत के गवर्नर जनरल बनने वाला डलहौजी यहाँ तेजी से रेलवे बिछाने का पक्का समर्थक था। 1853 में लिखे एक प्रसिद्ध नोट में उसने रेलों के विकास का एक व्यापक कार्यक्रम रखा। उसने चार प्रमुख ट्रैक लाईनों के जाल का प्रस्ताव रखा जो देश के अंदरूनी भाग को बड़े बंदरगाहों से तथा देश के विभिन्न भागों को आपस में जोड़ सकें।
- 1869 के अंत तक जमानत पर कंपनियाँ 4000 मील से अधिक लाइन बिछा चुकी थीं। यह धीमी थी अतः 1869 में भारत सरकार ने सरकारी उद्यम के रूप में नई रेल लाइन बिछाने का फैसला किया।
- 1880के बाद प्राइवेट कंपनियाँ और सरकार दोनों ने रेलवे लाइन बिछाई।
- 1905 तक लगभग 28000 मील लम्बी रेल लाइन बिछायी जा चुकी थीं।
- इन लाइनों में 350 करोड़ रूपये से अधिक की पूँजी लगी थी जो ब्रिटिश पूँजी निवेषकों की थीं।
- आरंभ के 50 वर्षों में वित्तीय घाटा ही हो रहा था।
- 1850 के दशक में ब्रिटेन में ब्याज की दर लगभग 3 प्रतिशत थीं।
- 1853 में कलकत्ता और आगरा के बीच पहली तार लाइन का आरंभ किया गया।
- लार्ड डलहौजी ने डाक टिकटो को भी आरंभ किया। उसने डाक की दरे भी घटा दी तथा पूरे देश में कहीं भी पत्र भेजने के लिए एकसमान दर रखी जो एक अधन्नी (पुराना दो पैसे) थीं। उसके सुधारों से पहले पत्र पर डाक टिकट कितना लगेगा, यह इस पर निर्भर था कि वह कितनी दूर जाएगा।
इस्तमरारी बंदोबस्तः
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- लार्ड कार्नवालिस ने 1793 में बंगाल और बिहार में इस्तमारी बंदोबस्त की प्रथा का आरंभ किया। इसकी दो खास विशेषताएँ थी। पहली यह कि जमींदारी और मालगुजारी को भूस्वामी बना दिया गया। उन्हें अब रैयतों से मालगुजारी की वसूली के लिए केवल सरकार के एजेंट का ही काम नहीं करना था बल्कि अब वे अपनी जमींदारी के अलावें की सारी जमीन के मालिक बन गए। उनके स्वामित्व के अधिकारी को वंशगत और हस्तांतरणीय बना दिया गया।
- दूसरी तरफ काश्तकारों का दर्जा गिर गया और अब वे बटाईदार होकर रह गए और वे जमीन पर अपने लम्बे समय से चले आ रहे अधिकारों तथा पारंपरिक अधिकारों से वंचित कर दिए गए।
- जमींदारों की किसानों से जो भी लगान मिलता उसका 10/11 भाग उन्हें राज्य को देना पड़ता था और वे केवल 1/11 भाग अपने पास रख सकते थें। लेकिन मालगुजारी की जो रकम उन्हें देनी थी वह हमेशा के लिए निश्चित कर दी गई है। किसी अन्य कारण से जमींदार की जागीर का लगान बढ़ जाए तो वह बढ़ी हुई रकम पूरी-पूरी अपने पास रख सकता था। इसमें राज्य कभी भी कोई हिस्सा नहीं मांगता था। अगर किसी कारण से फसल नष्ट हो जाए तो भी जमींदार को मालगुजारी निश्चित तिथि को नियमपूर्वक चुकानी पड़ती थीं, वरना उसकी जमीन बेच दी जाती थीं।
- 1765-66 और 1793 के बीच मालगुजारी संबंधी मांग लगभग दो गुनी हो गईं।
- 1794 और 1807 के बीच जमींदारों की लगभग आधी जमीन बेच दी गईं।
- जमींदारों के इस्तमाररी बंदोबस्त को बाद में उड़ीसा, मद्रास के उत्तरी जिलों और बनारस जिले में भी लागु कर दिया गया।
रैयतवारी बंदोबस्तः
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- अधिकारियों का मत था कि बड़ी जागीरों वाले ऐसे जमींदार नहीं है, जिनके साथ मालगुजारी की बंदोबस्त किया जा सके और इसलिए वहाँ जमींदार प्रथा लागू करने से स्थिति उलट-पुलट जायेगी।
- रीड और मुनरो के नेतृत्व में मद्रास के अनेक अधिकारियों ने यह सिफारिश की सीधें वास्तविक काश्तकारों के साथ बंदोबस्त किया।
- इस प्रथा में काश्तकार जमीन के जिस टुकड़े को जोतता -बोता था उसका वह मालिक मान लिया जाता था शर्त्त यह थी कि वह जमीन की मालगुजारी देती रहें।
- मुनरो के अनुसार- ‘‘यह वह प्रथा है, जो भारत में हमेशा ही रही है।
- 19वीं0 शताब्दी के आरंभ मद्रास और बम्बई प्रेसिडेंसियों के कुछ भागों रैयतवारी बंदोबस्त लागू किया गया।
- इसमें कोई स्थाई बंदोबस्त नहीं था।
- प्रत्येक 20-30 वर्ष पर पुनर्निधारण तब आमतौर पर मालगुजारी बढ़ाई जाती थीं।
- समाप्ति के कारणः
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- कृषक स्वामित्व की किसी प्रथा को जन्म नहीं दिया।
- वे बटाईदार मात्र है जो मालगुजारी न भरे तो जमीने बेच दी जायेगी।
- मालगुजारी बहुत काफी अधिक थी। मद्रास में 45-55 % तक मालगुजारी।
- सरकार ने मनचाहे मालगुजारी बढ़ाने का अधिकार अपने हाथ में रखा।
- अगर रैयत की फसल अंशतः या पूर्णतः नष्ट हो जाय तो भी उन्हें मालगुजारी देनी पड़ती थीं।
महलवारी प्रथाः
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- गंगा के दोआब में पश्चिमोत्तर प्रांत में, मध्य भारत के कुछ भागों में और पंजाब में जमींदार प्रथा का एक संशोधित रूप लागू - महलवारी प्रथा।
- इस व्यवस्था के अनुसार मालगुजारी के बंदोबस्त भू स्वामियों के साथ किया गया।
- पंजाब में ग्राम प्रथा के नाम से जानी जाने वाली एक संषोधित महलवारी प्रथा लागू की गयीं।
प्रशासनिक संगठन और सामाजिक तथा सांस्कृतिक नीतिः
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- भारत में ब्रिटिश प्रशासन के तीन खम्भे- नागरिक सेवा (सिविल सर्विस), सेना और पुलिस
- ड्यूक ऑफ वेलिंग्टन ने अपने भाई लार्ड वेल्सली के मातहत भारत में काम किया और उसने यूरोप जाने पर लिखा- ‘‘भारत में सरकार की व्यवसथा, सत्ता की नींव और उसे संभाले रखने तथा सरकार के कार्यकलापों को चलाने के तौर-तरीके समान उद्देश्य के लिए यूरोप में अपनाये गये, तौर, तरीकों से बिल्कुल भिन्न है ...................... वह सम्पूर्ण सत्ता की नींव और उपकरण की तलवार हैं।’’
नगरिक सेवा (सिविल सर्विस)
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- नगरिक सेवा का जन्मदाता - लार्ड कार्नवालिस।
- कार्नवालिस 1786 में- भारत का गर्वनर जनरल बना।
- जिले के कलक्टर का वेतन- 1500 रूपये प्रतिमाह एवं कुल वसूल की गई राजस्व का 1 प्रतिशत
- लार्ड वेलसली ने 1800 में नागरिक सेवा में आने वाले युवा लोगों के प्रशिक्षण के लिए कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज खोला। कम्पनी के निदेशकों ने उसकी कारवाई को पसन्द नहीं किया और 1806 में उन्होंने कलकत्ता के कॉलेज की जगह इंग्लैण्ड में हेलिवरी के अपने ईस्ट इण्डिया कॉलेज में प्रशिक्षण का कार्य आरंभ किया।
- 1853 तक नागरिक सेवा की सारी नियुक्तियाँ ईस्ट इण्डिया कम्पनी के निदेशक करते रहे।
- 1853 के चार्टर एक्ट के द्वारा वे नागरिक सेवा में नियुक्ति के अपने अधिकार को खो दिये और नागरिक सेवा में सारे प्रवेश प्रतियोगी परीक्षा के द्वारा की जाने लगीं।
- कार्नवालिस के बाद आने वाले गर्वनर जनरल जॉन शोर के शब्दों में अंग्रेजों के बुनियादी सिद्धान्त सारे भारतीय राष्ट्र को हरसंभव तौर पर अपने हितों और फायदों के लिए गुलाम बनाना था। भारतवासियों को हर सम्मान, प्रतिष्ठा या ओहदे से वंचित रखा गया है जिन्हें स्वीकार करने के लिए छोटे से छोटे अंग्रेज की भी चिरौरी की जा सकती है।
- चार्ल्स ग्रांट ने भारतीय जनता की निंदा करते हुए कहा कि वह ‘‘मनुष्यों की अत्यंत पतित और निकृष्ट नसल है, जिसमें नैतिक जिम्मेदारी की नाममात्र की भावना रह गई है ......... और जो अपने दुर्गुणों के कारण विपन्नता में धंसी हुई है।
- कार्नवालीस का विश्वास था कि - ‘‘हिंदुस्तान का हर निवासी भ्रष्ट है।’’
- भारतीय नागरिक सेवा को बहुधा ‘‘इस्पात का चौखट’ कहा गया है जिसने भारत में ब्रिटिश शासन का पोषण किया और लंबी अवधि तक बनाए रखा।
सेनाः
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- ब्रिटिश राज के दूसरे महत्वपूर्ण स्तंभ।
- कंपनी की अधिकांश सेना भारतीय सिपाहियों की थी जिन्हें मुख्य रूप से उन क्षेत्रों से भर्ती किया गया जो अभी उत्तर प्रदेश और बिहार में है।
- 1857 में भारत में कंपनी की फौज में 3,11,400 सैनिक थे जिनमें से 2,65,900 भारतीय थें। मगर उसके अफसर निश्चित रूप से कार्नवालिस के जमाने में केवल अंग्रेज होते थें।
- 1856 में सेना में केवल तीन ऐसे भारतीय थे जिनको 300 रूपए प्रति माह वेतन मिलता था और सबसे ऊँचा भारतीय अफसर एक सूबेदार था।
पुलिसः
- ब्रिटिश शासन का तीसरा स्तंभ।
- इसका सृजन करने वाला भी कार्नवालिस हीं था।
- कार्नवालिस ने थानों की व्यवस्था स्थापित की। हर थाने का प्रधान दरोगा होता था। दरोगा भारतीय होता था। बाद में, पुलिस के जिला सुपरिन्टेडेंट (अधीक्षक) का पद बनाया गया। सुपरिन्टेंडेंट जिले में पुलिस संगठन का प्रधान हो गया।
- पुलिस में भी भारतीयों को सभी ऊँचे ओहदों से अलग रखा गया।
- गाँवों में पुलिस की जिम्मेदारियों को चौकीदार निभाते थे जिनका भरण-पोषण गाँव वाले करते थें।
- गर्वनर जनरल बैटिंक ने 1832 में लिखाः- जहाँ तक पुलिस का सवाल है, वह जनता का रक्षक होने की स्थिति से कोसों दूर है। हाल के एक रेगुलेशन से बढ़कर कुछ भी अधिक लोकप्रिय नहीं हो सकता। इस रेगुलेशन के अनुसार कोई डकैती हुई हो तो पुलिस को तब तक जाँच करने की मनाही है जब तक लुटे गए व्यक्ति उसे नहीं बुलाए। कहने का मतलब यह है कि गड़ेरिया भेड़िए से बड़ा भुक्खड़ हिंसक पशु हैं।
न्यायिक संगठनः
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- न्यायिक व्यवस्था की शुरूआत वारे हेस्टिंग्स।
- कार्नवालिस ने इसे 1793 में सुदृढ़ बनाया।
- हर जिले में एक दीवानी अदालत कायम की गई जिसका प्रमुख एक जिला जज होता था जो नागरिक सेवा का प्रमुख होता था। इस तरह कार्नवालिस ने दीवानी जज और कलेक्टर के ओहदे को अलग-अलग कर दिया।
- जिला अदालत के फैसले के खिलाफ चार प्रांतीय अदालत में दीवानी अपील हो सकती थीं। अपील की आखिर सुनवाई- सदर दीवानी अदालत।
- जिला अदालत के नीचे रजिस्टार की अदालते थें जिसके प्रधान यूरोप वासी होती थें। अनेक छोटी अदालते थी जिनके प्रधान भारतीय जज होते थें। जिन्हें मुन्सिफ/अमीन कहा जाता था।
- फौजदारी मुकदमों का निपटारा करने के लिए कार्नवालिस ने बंगाल प्रेसीडेंसी को चार डिविजनों में बांट दिया। उनमें से हर एक में एक क्षेत्रीय न्यायालय (कोर्ट ऑफ सर्किट) स्थापित किया जिसके प्रधान नागरिक सेवा के लोग होते थे।
- कोर्ट ऑफ सर्किट के फैसलों के खिलाफ सदर निजामत अदालत में अपील की जा सकती थीं।
- फौजदारी अदालतों के मुस्लिम फौजदारी कानून को संशोधित कर कम सख्त रूप में लागू किया।
- विलियम बैंटिक ने 1831 में अपील कर प्रांतीय अदालतों तथा क्षेत्रीय न्यायालयों को खत्म कर दिया। उनका काम पहले कमिशनों और बाद में जिला जजों और जिला कलेक्टरों को सौंप दिया गया। बैंटिक ने न्यायिक सेवा में काम करने वाले भारतीयों के दर्जे और आयाम बढ़ा दिया। उसने भारतीयों को डिप्टी मजिस्ट्रेट, सबार्डिनेट जज और प्रिंसपल सदर अमीन नियुक्त किया। सदर दीवानी अदालत और सदर निजामत अदालत की जगह 1865 में कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में उच्च न्यायालय स्थापित किये गये।
- 1833 चार्टर ऐक्ट के कानून बनाने के सारे अख्तियार कौंसिल की सहमति से गवर्नर जनरल को दे दिये गयें।
- सरकार ने 1833 में लार्ड मैकाले के नेतृत्व में भारतीय कानूनों को संहिताबद्ध करने के लिए एक विधि आयोग को नियुक्त किया। उसके परिश्रम के फलस्वरूप् भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code) पश्चिमी देशों से लाई गई दिवानी प्रक्रिया और दण्ड प्रक्रिया संहितायें और कानून की अन्य संहितायें आईं।
- चार्टर एक्ट के तहत आये Penal Code के जरिए भारत न्यायिक रूप् से सूत्रबद्ध हुआ।
सामाजिक और सांस्कृतिक नीतिः
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- 1813 तक अंग्रेजों ने देश के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में गैर हस्तक्षेप की नीति अपनाई। मगर 1813 के बाद समाज और संस्कृति के रूपानांतर के लिए सक्रिय कदम उठायें।
- थॉमसन और गैरेन्ट के शब्दों में- ‘‘पुरानी बटमारी की मनोदशा और तरीके, आधुनिक उद्योगवाद तथा पूँजीवाद की मनोदशा तथा तरीकें में बदल गयें।’’
- नया चिंतन 18वीं0 शताब्दी की बौद्धिक क्रांति, फ्रांसीसी, क्रांति और औद्योगिक क्रांति से उत्पन्न हुआ था।
- मानवताबाद इस धारणा पर आधारित था कि प्रत्येक मानव प्राणी अपने आप ही साध्य है, इसी रूप ने उसका सम्मान और महत्व दिया जाना चाहिए।
- भारत में पुराने दृष्टिकोण के पक्षधर शुरू के काल में - वारेन हेस्टिंग्स, प्रसिद्ध लेखक तथा सांसद एडमंड वर्क; बाद के प्रतिनिधि - ऑफिसर मुनरो, मैलक, एलिफिस्टन, मेटकॉफ
- भारतीय समाज और संस्कृति के आधुनिकीकरण की नीति ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के कारण प्रारंभ हुई। विलियम विलविट - फोर्स, ईस्ट इण्डिया कम्पनी के निदेशक मण्डल के अध्यक्ष- चार्ल्स ग्राण्ड जैसे धर्मायण लोगों ने बढ़ावा दिया जो चाहते थे कि भारत में इसाई धर्म फैले।
- प्रो0 एच0एस0 डाडवेल अपने ही देवताओं की मान्यता पर शंका प्रकट करने की शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने (पाश्चात्य प्रभाव में आये भारतीयों ने) बाइबिल की प्रमाणिकता और उसके वृतान्त की सच्चाई पर भी संदेह व्यक्त किया।
लोकोपकारी कारवाईयाँ -
- 1829- सती प्रथा की गैर कानूनी घोषित की
- विलियम बैटिंक ने कानून लाया कि पति के चिता पर विधवा के जल मरने में जो भी सहयोगी होंगे उन्हें अपराधी माना जायेगा।
- शिशु हत्या को रोकने के संबंध में कानून - 1795 और 1802 में बनाये गये थे मगर उन्हें सख्ती से बैटिंक और हार्डिंग लागू ही किया।
- हार्डिंग ने नर बलि की प्रथा जो गाँव में थीं को खत्म करने के लिए भी कानून बनाई।
- 1856 में हिन्दू विधवा पूर्नर्विवाह- ईश्वरचन्द विद्यासागर
आधुनिक शिक्षा का प्रसार
- 1781 में वारेन हेस्टिंग्स ने मुस्लिम कानून और सम्बद्ध विषयों के अध्ययन और पढ़ाई के लिए कलकत्ता मदरसा कायम किया।
- जोनाथन डंकन ने 1791 में हिन्दू कानून और दर्शन के अध्ययन के लिए वाराणसी में संस्कृत कॉलेज स्थापित किया। वह वाराणसी का रेजीडेंट था।
- 1813 के चार्टर ऐक्ट - विद्वान भारतीयों को बढ़ावा देने तथा देश में आधुनिक विज्ञानों को प्रोत्साहन करने का सिद्धान्त शामिल कर लिया गया। इस उद्देष्य के लिए 1 लाख रूपये खर्च करने का निर्देश दिया परंतु कंपनी के अधिकारियों ने 1823 तक यह तुच्छ रकम भी नहीं दी।
- 1835 में भारत सरकार ने निर्णय किया कि जो भी सीमित साधन वह देने को तैयार है, उसे वह पाश्चात्य विज्ञान तथा पाश्चात्य साहित्य को केवल अंग्रेजी भाषा के माध्यम से पढ़ाने के लिए लायेगी।
- मैकाले (गवर्नर जनरल के कौंसिल में विधि सदस्य)- एक प्रसिद्ध पत्र के माध्यम से तर्क दिया कि भारतीय भाषायें इतनी विकसित नहीं है कि शिक्षा के उद्देश्य को पूरा कर सके और ‘‘प्राच्य विद्या यूरोपीय विद्या से बिल्कुल निकृष्ट है।’’
- भारत सरकार ने विशेषकर बंगाल में 1835 के निर्णय पर तेजी से कारवाई की और अपने स्कूलों और कॉलेजों में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बना दिया।
- शिक्षा पर खर्च की कमी को पूरा करने के लिए अधिकारियों ने तथाकथित अधोगामी निस्पंदन सिद्धान्त (Downward filtration theory) का सहारा लिया।
- Downward filtration theory सरकारी तौर पर 1854 में छोड़ दिया गया मगर 1947 तक चलती रहीं।
- भारत में शिक्षा के विकास में भारत मंत्री (Secretary of State) की 1854 की षिक्षा विषयक विज्ञापित (educational dispatch) एक महत्वपूर्ण कदम थी। इस विज्ञपति ने भारत सकरार से जन शिक्षा की जिम्मेदारी लेने को कहा।
- विज्ञपति द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुसार सभी प्रांतों में शिक्षा विभाग बने और 1857 में कलकत्ता, मुम्बई, मद्रास में संबंद्धकारी विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।
- प्रसिद्ध बांग्ला उपान्यासकार बंकिम चन्दचटर्जी 1858 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रथम दो स्नातकों में से थें।
- मैकाले ने निर्देश दियाः- हमे ऐसा वर्ग बनाने के लिए जी जान से प्रयास करना चाहिए जो हमारे और उन करोड़ों लोगों के बीच जिन पर हम शासन करते है, द्विभाषीय का काम कर सके, वह उन लोगों का वर्ग हो जो रक्त और रंग की दृष्टि से भारतीय मगर रूचि, विचारों, आचरण तथा बुद्धि की दृष्टि से अंग्रेज हो।
- परंपरागत भारतीय शिक्षा प्रणाली धीरे-धीरे सरकारी समर्थन के अभाव और उससे भी अधिक 1844 की सरकारी घोषणा के कारण समाप्त हो गई सिजके अनुसार सरकारी रोजगार के लिए आवेदन करने वाले को अंग्रेजी का ज्ञान होना चाहिए।
- 1911 में 94 प्रतिशत और 1921 में 92 प्रतिशत भारतीय निरक्षर थे।
- प्रारंभिक शिक्षा नीति में लड़कियों की शिक्षा की बिल्कुल अवहेलना, 1921 में केवल 2 प्रतिशत भारतीय स्त्रियाँ लिख पढ़ सकती थीं और 1919 में केवल 490 लड़कियां बंगाल प्रेसिडेंसी के हाई स्कूलों की चार उच्च कक्षाओं में पढ़ रहीं थीं।
- 1857 तक देश में कलकत्ता, बंबई और मद्रास में केवल तीन ही मेडिकल कॉलेज थें।
- उच्चतर तकनीकी शिक्षा देने के लिए केवल एक ही इंजीनियरिंग कॉलेज रूड़की में था। उसके दरवाजे केवल यूरोपवासियों तथा यूरेशियन लोगों के लिए खुले हुए थें।